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जन्माष्टमी का त्यौहार हर साल बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है इन दिनों सभी घरो में इसकी तैयारी शुरू हो गयी है। भगवान श्री कृष्ण को दूध ,मक्खन ,से बनी चीजे काफी पसंद है .ऐसे में इस जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण की खुश करने के लिए व्रत वाली खीर बना सकते है .जन्माष्टमी के दिन बहुत से लोग व्रत रखते है ऐसे में दिन भर एनर्जी से भरपूर रहने के लिए या भगवान को भोग चढ़ाकर प्रसाद में ग्रहण करने के लिए आप व्रत वाली खीर बना सकते है ये झटपट बनकर तैयार हो जाती है इसके रेसिपी काफी सरल है तो चलिए जानते है व्रत वाली खीर बनाने की सरल रेसिपी के बारे मेंसामग्री - सावा के चावल आधा कप,चीनी आधा कप ,किशमिश 15,इलायची पाउडर आधा चम्मच,बादाम 13खीर बनाने की रेसिपी - जन्माष्टमी के मोके पर व्रत वाली खीर बनाने के लिए सबसे पहले एक पेन में दूध डाले और इसे अच्छे से उबाल ले। इसके बाद जब दूध गाढ़ा हो जाये तो इसमें सावा का चावल मिला दे।अब चावल को अच्छे तरह से पकने दे।अब इसमें जरूरतानुसार चीनी डाले।खीर में चीनी डालने के बाद इसे घुलने दे अब इसमें ड्राई फ्रूट्स और इलायची मिला दे और खीर को अच्छी तरह से चलाये ध्यान रखे की ये जले नहीं .कुछ देर इसे धीमी गैस पर पका दे जब ये अच्छे से पक जाए तो इसे गैस से उतार ले अब आपकी व्रत वाली खीर बनकर तैयार है इसे सर्व करे या इसका भोग भी लगा सकते हैThe festival of #Janmashtami is celebrated every year with great pomp, these days preparations have started in all the houses. Lord Shri Krishna is very fond of things made from milk, butter, so this Janmashtami worship Lord Shri.

जन्माष्टमी का त्यौहार हर साल बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है इन दिनों सभी घरो में इसकी तैयारी शुरू हो गयी है। भगवान श्री कृष्ण को दूध ,मक्खन ,से बनी चीजे काफी पसंद है .ऐसे में इस जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण की खुश करने के लिए व्रत वाली खीर बना सकते है .जन्माष्टमी के दिन बहुत से लोग व्रत रखते है ऐसे में दिन भर एनर्जी से भरपूर रहने के लिए या भगवान को भोग चढ़ाकर प्रसाद में ग्रहण करने के लिए आप व्रत वाली खीर बना सकते है ये झटपट बनकर तैयार हो जाती है इसके रेसिपी काफी सरल है तो चलिए जानते है व्रत वाली खीर बनाने की सरल रेसिपी के बारे में सामग्री - सावा के चावल आधा कप,चीनी आधा कप ,किशमिश 15,इलायची पाउडर आधा चम्मच,बादाम 13 खीर बनाने की रेसिपी - जन्माष्टमी के मोके पर व्रत वाली खीर बनाने के लिए सबसे पहले एक पेन में दूध डाले और इसे अच्छे से उबाल ले। इसके बाद जब दूध गाढ़ा हो जाये तो इसमें सावा का चावल मिला दे।अब चावल को अच्छे तरह से पकने दे।अब इसमें जरूरतानुसार चीनी डाले। खीर में चीनी डालने के बाद इसे घुलने दे अब इसमें ड्राई फ्रूट्स और इलायची मिला दे और खीर को अच्छी तरह से चलाये ध्यान रखे की...

जय श्री कृष्ण जी  भगवान श्रीकृष्ण को योगेश्वर क्यों कहा गया ?By वनिता कासनियां पंजाबयोगेश्वर भगवान कृष्ण को दी गई एक अत्यंत उपयुक्त उपाधि है। इस शब्द का उद्देश्य इंद्रियों का स्वामी है। कृष्ण, सर्वोच्च चेतना ने मानव जाति को उसकी नींद और अज्ञानता से मुक्त करने के लिए पृथ्वी पर उतरने का विकल्प चुना। कृष्ण ने अपने जीवन में कई अलौकिक उपलब्धियां हासिल कीं। पूर्णावतार (पूर्ण अवतार) के रूप में, वे हमेशा भौतिक दुनिया के किसी भी बंधन से दूर अस्तित्व की आनंदमय स्थिति में रहे। यही एक कारण है कि कृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है।एक योगी एक सुपर इंसान है जो जीवन के उच्च और अधिक योग्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निम्न झुकावों का त्याग करता है। एक योगी को अपनी परिपक्वता के स्तर और श्रेष्ठ क्षमताओं को साबित करने के लिए अपने व्रत या व्रत पर दृढ़ रहना चाहिए। अपने भक्त की मन्नत को पूरा करने के लिए कृष्ण ने इस संबंध में एक कदम और आगे बढ़कर अपनी मन्नत का त्याग कर दिया। ऐसा करके, उन्होंने साबित किया कि वह एक श्रेष्ठ योगी या योगेश्वर, योगियों के भगवान हैं। कृष्ण के इस पहलू को उजागर करने वाली घटना यहाँ दिलचस्प और ध्यान देने योग्य है।महाभारत युद्ध से पहले, धर्मजा और धुर्योदन दोनों अपना समर्थन जुटाते हुए आगे बढ़े। इन दोनों के आकर्षण का केंद्र कृष्णा था। एक दिन धर्मजा और दुर्योधन कृष्ण से सहायता मांगने गए। कृष्ण अपने सोफे पर लेटे हुए थे। धर्मजा कृष्ण के चरणों में खड़े थे जबकि दुर्योधन उनके सिर के पास रहे। जब कृष्ण ने झपकी लेने के बाद अपनी आँखें खोलने का नाटक किया, तो उनकी नज़र सबसे पहले धर्मजा पर पड़ी, जो उनके चरणों में विनम्रतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा और दुर्योधन को प्रणाम किया। कृष्ण ने कहा कि पहले आओ पहले प्राथमिकता के आधार पर धर्मजा और धुर्युदान पूछ सकते हैं कि वे उनसे क्या चाहते हैं। कृष्ण ने यह भी कहा कि उन्होंने एक तरफ रहना चुना और दूसरी तरफ अपनी सेना को दे देंगे। धर्मजा ने कृष्ण की मांग की जबकि दुर्योधन ने कृष्ण की सेना मांगी। कृष्ण ने आगे कहा कि जब वह धर्मजा का पक्ष लेंगे तो युद्ध के मैदान में कभी भी अपने हाथ में हथियार नहीं रखेंगे।जब कौरव सेना का नेतृत्व करने की भीष्म की बारी थी, तो दुर्योधन ने उनसे एक दिन में पांडवों और उनकी सेना को परास्त करने की अपेक्षा की। उन्होंने ठीक से युद्ध न करने के लिए भीष्म को फटकार लगाई और उनका अपमान किया। अपने क्रोध में भीष्म ने प्रतिज्ञा की कि वे अपने भीषण युद्ध से कृष्ण को भी अपने हाथों में शस्त्र उठाएंगे। युद्ध के मैदान में भीष्म दहाड़ते हुए सिंह की तरह आगे की ओर झुके। कृष्ण ने भीष्म को बेकाबू पाया। वे अपने भक्त के हृदय को जानते थे। वह कभी नहीं चाहता था कि भीष्म अपनी प्रतिज्ञा को विफल करे। इसलिए, कृष्ण ने अपने हाथों पर एक रथ का पहिया ले जाने का विकल्प चुना और उसे युद्ध के मैदान में घुमाया। इस प्रकार, अपने भक्त को पास करने के लिए, कृष्ण खुद को विफल करने के लिए तैयार थे। यहाँ हम कृष्ण को यह साबित करने के लिए कई कदम ऊपर चढ़ते हुए पाते हैं कि वह योगेश्वर हैं, जो एक उच्च चिंता के लिए निचली चिंताओं का त्याग करते हैं - हाँ, सर्वोच्च भगवान के लिए, अपने भक्त का समर्थन करना उनकी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा से अधिक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।#Vnitaराधे राधेभगवद गीता में, कृष्ण ने कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग नामक तीन धाराओं में दिव्य ज्ञान का समर्थन किया। पुरुषों को अनंत काल तक शिक्षित करने के लिए इन तीन योगों के रूप में योगेश्वर के फव्वारा सिर से सर्वोच्च ज्ञान प्रवाहित हुआ।jai shree krishna jiWhy is Lord Krishna called Yogeshwar?By Vnita Kasnia PunjabYogeshwar is a highly appropriate title given to Lord Krishna. The object of this word is the lord of the senses. Krishna

जय श्री कृष्ण जी  भगवान श्रीकृष्ण को योगेश्वर क्यों कहा गया ? By वनिता कासनियां पंजाब योगेश्वर भगवान कृष्ण को दी गई एक अत्यंत उपयुक्त उपाधि है। इस शब्द का उद्देश्य इंद्रियों का स्वामी है। कृष्ण, सर्वोच्च चेतना ने मानव जाति को उसकी नींद और अज्ञानता से मुक्त करने के लिए पृथ्वी पर उतरने का विकल्प चुना। कृष्ण ने अपने जीवन में कई अलौकिक उपलब्धियां हासिल कीं। पूर्णावतार (पूर्ण अवतार) के रूप में, वे हमेशा भौतिक दुनिया के किसी भी बंधन से दूर अस्तित्व की आनंदमय स्थिति में रहे। यही एक कारण है कि कृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है। एक योगी एक सुपर इंसान है जो जीवन के उच्च और अधिक योग्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निम्न झुकावों का त्याग करता है। एक योगी को अपनी परिपक्वता के स्तर और श्रेष्ठ क्षमताओं को साबित करने के लिए अपने व्रत या व्रत पर दृढ़ रहना चाहिए। अपने भक्त की मन्नत को पूरा करने के लिए कृष्ण ने इस संबंध में एक कदम और आगे बढ़कर अपनी मन्नत का त्याग कर दिया। ऐसा करके, उन्होंने साबित किया कि वह एक श्रेष्ठ योगी या योगेश्वर, योगियों के भगवान हैं। कृष्ण के इस पहलू को उजागर करने वाली घटना यहाँ...

दो सुन्दर प्रसंग एक श्रीकृष्ण का और एक श्री राम का,,माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे।श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया।बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:-"देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना"घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी।अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी।घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई।सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो , पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ...क्यों री घंटी...तू बजी क्यो...मैंने मना किया था न...?"घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया , मैं नहीं बजी...आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया , मैं नहीं बजी , किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था...मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु...मंदिर में जब पुजारी भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं...इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी..."श्री गिरिराज धरण की जय...श्री बाल कृष्ण की जयउस समय का प्रसंग है जब केवट भगवान के चरण धो रहा है. बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान का एक पैर धोता का उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देता है,और जब दूसरा धोने लगता है तो पहला वाला पैर गीला होने सेजमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,केवट दूसरा पैर बाहर रखता है फिर पहले वाले को धोता है,एक-एक पैर को सात-सात बार धोता है.कहता है प्रभु एक पैर कठौती मे रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो. जब भगवान ऐसा करते हैतो जरा सोचिये क्या स्थिति होगी , यदि एक पैर कठौती में है दूसरा केवट के हाथो में, भगवान दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - केवट मै गिर जाऊँगा ?केवट बोला - चिंता क्यों करते हो सरकार !दोनों हाथो को मेरे सिर पर रखकर खड़े हो जाईये, फिर नहीं गिरेगे ,जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है,भगवान भी आज वैसे ही खड़े है.भगवान केवट से बोले - भईया केवट !मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया.केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?भगवान बोले - सच कह रहा हूँ केवट,अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, किमै भक्तो को गिरने से बचाता हूँ परआज पता चला कि,भक्त भी भगवान को गिरने से बचाता है.कान्हा दीवानी वनिता की और से जय जय श्री राधे राधे

दो सुन्दर प्रसंग एक श्रीकृष्ण का और एक श्री राम का ,, माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई। उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी। बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे। श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया। बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:- "देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना" घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी" बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी। ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी। अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी। घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई।  ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई। सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये। बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो ...