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सूर्य का तांत्रिक मंत्र#ॐ_घृणि_ #सूर्याय_नमःसूर्य का बीज मंत्र#ॐ_ह्रां_ह्रीं_ह्रौं_सः #सूर्याय नमः#सूर्यदेव_की_व्रत_ #कथाप्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुनकर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती। सूर्य भगवान की अनुकंपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिंता एवं कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई।प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुंदर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुंदर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं।पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरंत उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी।बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ।उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उसे नगर के राजा के पास भेज दिया। सुंदर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा. तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा। सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया।राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए, राजतय में चारों ओर खुशहाली छा गई। स्त्री-पुरुष सुखी जीवन यापन करने लगे तथा सभी लोगों के शारीरिक कष्ट भी दूर हो गए।श्री सूर्य देव की आरतीजय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥#Vnita 🙏🙏💞हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव

सूर्य का तांत्रिक मंत्र#ॐ_घृणि_ #सूर्याय_नमःसूर्य का बीज मंत्र#ॐ_ह्रां_ह्रीं_ह्रौं_सः #सूर्याय नमः #सूर्यदेव_की_व्रत_ #कथाप्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुनकर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती। सूर्य भगवान की अनुकंपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिंता एवं कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई।प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर क...

नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां_पंजाब #संगरिया #राजस्थानजो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं और सबका बहुत ध्यान रखते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । नन्दबाबा के सौभाग्य को दर्शाने वाला एक सुन्दर श्लोक है—श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता: ।अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परब्रह्म ।।अर्थात्—संसार से भयभीत होकर कोई श्रुति (वेद) का आश्रय ले, तो दूसरा स्मृति (उपनिषदों) की शरण ग्रहण करे तो कोई तीसरा महाभारत (ग्रन्थ) की शरण में जाए; परन्तु हम तो नन्दबाबा की चरण-वन्दना करते हैं, जिनके आंगन में साक्षात् परब्रह्म श्रीकृष्ण खेलते हैं ।नन्दबाबा है श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता!!!!!!गोलोक में #नन्दबाबा #भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, #गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया।भगवान के नित्य-जन जब पृथ्वी पर पधारते हैं तो कोई-न-कोई प्राणी जो उनका अंश रूप होता है, उनसे एकाकार हो जाता है; इसीलिए पूर्वकल्प में वसु नाम के द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवी ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वर मांगा कि ‘जब श्रीहरि पृथ्वी पर प्रकट हों, तब हमारा उनमें पुत्र-भाव हो ।’ ब्रह्माजी के वरदान से द्रोण व्रज में नन्द हुए और धरादेवी यशोदा हुईं ।नन्दबाबा, वसुदेवजी और नौ नन्दयदुवंश के राजा देवमीढ़ मथुरा में रहते थे । उनकी दो पत्नियां थी । पहली पत्नी क्षत्रियकन्या थी जिनके पुत्र हुए शूरसेन और शूरसेन के पुत्र थे वसुदेवजी । राजा देवमीढ़ की दूसरी पत्नी वैश्यपुत्री थी जिनके पुत्र का नाम था पर्जन्य । इन्होंने यमुना के पार महावन में अपना निवास बनाया। ये व्रजमण्डल के सबसे बड़े माननीय गोप थे । इनके नौ पुत्र हुए जिन्हें ‘नौ नन्द’ कहा जाता है, जिनके नाम हैं—धरानन्द,ध्रुवनन्द,उपनन्द,अभिनन्द,नन्द,सुनन्द,कर्मानन्द,धर्मानन्द, और बल्लभजी।मझले होने पर भी भाइयों की सम्मत्ति से नन्दजी ‘व्रजेश्वर’—गोपों के नायक बने । प्रत्येक गोप के पास हजारों गौएं होती थीं । जहां गौएं रहती थीं, उसे ‘गोकुल’ कहते थे । नौ लाख गायों के स्वामी को ‘नन्द’ कहा जाता था।वसुदेवजी नन्दबाबा के भाई ही लगते थे और उनसे नन्दबाबा की बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी । जब मथुरा में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा, तब वसुदेवजी ने अपनी पत्नी रोहिणीजी को नन्दजी के यहां भेज दिया । श्रीकृष्ण को भी वसुदेवजी चुपचाप नन्दगृह में रख आए ।नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!!!गोपराज नन्द समस्त समृद्धियों से सम्पन्न थे, पर उनके कोई पुत्र नहीं था । आयु का चौथापन था इसलिए उपनन्द आदि वृद्ध गोपों ने एक पुत्रेष्टि-यज्ञ का आयोजन किया । इधर बाहर यज्ञमण्डप ब्राह्मणों की वेदध्वनि से मुखरित था, उधर अंत:पुर में गोपराज नन्द यशोदाजी से कह रहे थे–’व्रजरानी ! मैं जिसको सदा अपने पुत्र के रूप में देखता हूँ, मैंने जिसको अपने मनोरथ पर बैठाया है और जिसको स्वप्न में देखा है, वह ‘अचल’ है । ऐसी असम्भव बात कहना पागलपन ही माना जाएगा । सुनो, मैं अपने मनोरथ में और स्वप्न में देखता हूँ दिव्यातिदिव्य नीलमणि सदृश्य श्यामसुन्दर वर्ण का एक बालक, जिसके चंचल नेत्र अत्यन्त विशाल हैं, वह तुम्हारी गोद में बैठकर भांति-भांति के खेल कर रहा है । उसे देखकर मैं अपने आपको खो देता हूँ । यशोदे ! सत्य बताओ, क्या कभी तुमने भी स्वप्न में इस बालक को देखा है ?’गोपराज की बात सुनकर यशोदाजी आनन्दविह्वल होकर कहने लगीं–’व्रजराज ! मैं भी ठीक ऐसे ही बालक को सदा अपनी गोद में खेलते देखती हूँ । मैंने भी अति असंभव समझकर कभी आपको यह बात नहीं बतायी । कहां मैं क्षुद्र स्त्री और कहां दिव्य नीलमणि ।’ नन्दबाबा ने कहा–भगवान नारायण की कृपादृष्टि से इस दुर्लभ-सी मनोकामना का पूर्ण होना असंभव नहीं है । अत: नन्द-दम्पत्ति ने एक वर्ष के लिए श्रीहरि को अत्यन्त प्रिय द्वादशी तिथि के व्रत का नियम ले लिया ।नन्द-यशोदा के द्वादशी-व्रत की संख्या बढ़ने के साथ-ही-साथ स्वप्न में देखे हुए परम सुन्दर दिव्य बालक को पुत्र रूप में प्राप्त करने की लालसा भी बढ़ती गई । व्रत-अनुष्ठान पूर्ण होने पर एक दिन उन्होंने अपने इष्टदेव चतुर्भुज नारायण को स्वप्न में उनसे कहते सुना–’द्रोण और धरारूप से तप करके तुम दोनों जिस फल को प्राप्त करना चाहते थे, उसी फल का आस्वादन करने के लिए तुम दोनों स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हुए हो। शीघ्र ही तुम लोगों का वह सुन्दर मनोरथ सफल होगा।’ भगवान के वचनों को सुनकर नन्द-यशोदा उस सुन्दर बालक को पुत्ररूप में प्राप्त करने की प्रतीक्षा करने लगे ।भगवान पहले नन्दबाबा के हृदय में आए और फिर स्वप्न में दीखा हुआ बालक एक बिजली-सी चमकती हुई बालिका के साथ नन्दहृदय से निकल कर यशोदाजी के हृदय में प्रवेश कर गया । आठ महीनों के बाद भाद्रप्रद मास की कृष्णाष्टमी के दिन नन्दनन्दन का प्राकट्य हो गया और व्रजराज का वंश चलने से व्रज को आधार-स्तम्भ मिल गया ।नन्दबाबा को हुआ श्रीकृष्ण के स्वरूप का ज्ञान!!!!!!एक दिन नन्दबाबा एकादशी का व्रत करके द्वादशी के दिन आधी रात को यमुना में स्नान करने आए । उस समय वरुण के दूतों ने उन्हें पकड़ लिया और वरुणलोक में ले गए । दूसरे दिन प्रात:काल गोप नन्दजी को नहीं देखकर विलाप करने लगे । सर्वान्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण सब बातें जान कर वरुण लोक गए । वहां वरुणदेव ने उनकी पूजा की और अपने दूतों की धृष्टता के लिए माफी मांगी । तब भगवान नन्दबाबा को लेकर व्रज में आए तो उन्हें विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण देवताओं के कार्य के लिए अवतीर्ण होने वाले साक्षात् पुरुषोत्तम ही हैं ।इसी प्रकार एक बार नन्दजी शिवरात्रि को सब गोपों के साथ अम्बिकावन में देवीपूजा के लिए गए । वहां रात्रि में सोते समय नन्दजी को एक अजगर ने पकड़ लिया । गोपों ने उसे जलती लकड़ी से बहुत मारा, पर वह गया नहीं । तब भगवान श्रीकृष्ण ने पैर के अंगूठे से उसे छू दिया । छूते ही वह गन्धर्व बन गया और उसकी सद्गति हो गयी ।श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से विरह में व्रजवासियों की बड़ी आर्त दशा हो गई । एक दिन श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा ज्ञानी उद्धव से कहा–हे उद्धव ! तुम शीघ्र ही व्रज जाओ, ब्रह्मज्ञान का संदेश सुनाकर व्रजवासियों का ताप हरो । उद्धवजी व्रज में आए और दस मास यहीं रहे । नन्दबाबा से विदा लेते समय उद्धवजी ने उन्हें समझाने की चेष्टा की—‘श्रीकृष्ण किसी के पुत्र नहीं हैं, वे तो स्वयं भगवान हैं ।’ पिता के वात्सल्य से अभिभूत नन्दबाबा ने कहा–’तुम्हारे मत से श्रीकृष्ण ईश्वर हैं, अच्छा, वैसा ही हो । उस कृष्णरूपी परमेश्वर में मेरी रति और मति सदैव लगीं रहे।’ ऐसा कहते ही नन्दरायजी की आंखों से अश्रुओं की झड़ी लग गई।नन्दबाबा वात्सल्यरस के अधिदेवता!!!!!एक बार सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में पूरा व्रजमण्डल और द्वारकावासी एकत्र हुए । उस समय का कितना करुणापूर्ण दृश्य था जब नन्दबाबा ने अपने प्यारे कन्हैया को गोदी में बिठाकर उनका मुख चूमा । उस चुम्बन में कितनी विरह-वेदना, कितनी अतीत की स्मृतियां बसीं थीं इसे कौन जान सकता है ? कुरुक्षेत्र से लौटने पर भगवान श्रीकृष्ण के निज धाम पधारने पर व्रजमण्डल, ग्वाल-बाल, गोप-गोपियां, गौ-बछड़े, दिव्य वृक्ष, लता आदि नन्दबाबा के साथ अपने सनातन गोलोक को चले गए, जहां न बुढ़ापा है न रोग, न ही है मृत्यु का भय । बस है तो चारों तरफ सच्चिदानन्द आनन्दघन श्रीकृष्ण का आनन्द-ही-आनन्द।#वनिता_कासनियां_पंजाब 🙏🙏❤️❤️ राधे राधे ❤️मैं कभी जन्मा नहीं.... मैं अमर हूँ पार्थ,मैं ही सबसे पहले हूँ,, और मैं ही सबके बाद...!!🙏 🙏🌹जय #श्री #राधे #कृष्णा 🌹🙏🙏

नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां_पंजाब #संगरिया #राजस्थानजो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं और सबका बहुत ध्यान रखते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । नन्दबाबा के सौभाग्य को दर्शाने वाला एक सुन्दर श्लोक है—श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता: ।अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परब्रह्म ।।अर्थात्—संसार से भयभीत होकर कोई श्रुति (वेद) का आश्रय ले, तो दूसरा स्मृति (उपनिषदों) की शरण ग्रहण करे तो कोई तीसरा महाभारत (ग्रन्थ) की शरण में जाए; परन्तु हम तो नन्दबाबा की चरण-वन्दना करते हैं, जिनके आंगन में साक्षात् परब्रह्म श्रीकृष्ण खेलते हैं ।नन्दबाबा है श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता!!!!!!गोलोक में #नन्दबाबा #भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, #गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया।भगवान के नित्य-जन ...

🌹यह मंदिर देवराज इंद्र ने बनवाया था - करोड़ो साल पहले🌹 🌹 #वनिता #कासनियां #पंजाब मंदिर - इसी मंदिर में शिव विवाह हुआ था🌹🙏🌹Om Shanti🌹🙏मीनाक्षी मंदिर, मदुरई - जिसके आगे दुनिया की प्रत्येक सुंदर से सुंदर चीज कुछ नही ... "कांची तु कामाक्षी, मदुरै मिनाक्षी,दक्षिणे कन्याकुमारी ममः शक्ति रूपेण भगवती ।।नमो नमः नमो नमः।।अर्थात , शक्ति का कांची ने नाम कामाक्षी जी, मदुरई में मीनाक्षी, दक्षिण में कन्याकुमारी ।यहां के लोगो की मान्यता है, की भगवान शिव का विवाह इसी मंदिर में हुआ था । मां का यह विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडू के मदुरै शहर में है। यह मंदिर मीनाक्षी अम्मन मंदिर प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। माँ मीनाक्षी का यह अम्मन मंदिर को विश्व के नए सात अजूबों के लिए नामित किया गया है।इस मन्दिर का स्थापत्य एवं वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है, जिस कारण यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर स्थित है, एवं इसका कारण इसका विस्मयकारक स्थापत्य ही है। इस इमारत समूह में 12 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं। इन पर बडी़ महीनता एवं कुशलतापूर्वक रंग एवं चित्रकारी की गई है, जो देखते ही बनती है। यह मन्दिर तमिल लोगों का एक अति महत्वपूर्ण द्योतक है, एवं इसका वर्णन तमिल साहित्य में पुरातन काल से ही होता रहा है।🌹पौराणिक_कथा🌹हिन्दू आलेखों के अनुसार, भगवान शिव पृथ्वी पर सुन्दरेश्वरर रूप में स्वयं देवी पार्वती पृथ्वी पर मिनाक्षी से विवाह रचाने अवतरित हुए। इस विवाह को विश्व की सबसे बडी़ घटना माना गया, जिसमें लगभग पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई में एकत्रित हुए थे। भगवान विष्णु स्वयं, अपने निवास बैकुण्ठ से इस विवाह का संचालन करने आये। ईश्वरीय लीला अनुसार इन्द्र के कारण उनको रास्ते में विलम्ब हो गया। इस बीच विवाह कार्य स्थानीय देवता कूडल अझघ्अर द्वारा संचालित किया गया। बाद में क्रोधित भगवान विष्णु आये और उन्होंने मदुरई शहर में कदापि ना आने की प्रतिज्ञा की। और वे नगर की सीम से लगे एक सुन्दर पर्वत अलगार कोइल में बस गये। बाद में उन्हें अन्य देवताओं द्वारा मनाया गया, एवं उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण कराया।यह विवाह एवं भगवान विष्णु को शांत कर मनाना, दोनों को ही मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जिसे चितिरई तिरुविझा या अझकर तिरुविझा, यानि सुन्दर ईश्वर का त्यौहार ।इस दिव्य युगल द्वारा नगर पर बहुत समय तक शासन किया गया। यह वर्णित नहीं है, कि उस स्थान का उनके जाने के बाद्, क्या हुआ? यह भी मना जाता है, कि इन्द्र को भगवान शिव की मूर्ति शिवलिंग रूप में मिली और उन्होंने मूल मन्दिर बनवाया। #Vnita 🙏🙏💞इस प्रथा को आज भी मन्दिर में पालन किया जाता है ― त्यौहार की शोभायात्रा में इन्द्र के वाहन को भी स्थान मिलता है।

🌹यह मंदिर देवराज इंद्र ने बनवाया था - करोड़ो साल पहले🌹  🌹 #वनिता #कासनियां #पंजाब मंदिर - इसी मंदिर में शिव विवाह हुआ था🌹 🙏🌹Om Shanti🌹🙏 मीनाक्षी मंदिर, मदुरई - जिसके आगे दुनिया की प्रत्येक सुंदर से सुंदर चीज कुछ नही ...  "कांची तु कामाक्षी, मदुरै मिनाक्षी, दक्षिणे कन्याकुमारी ममः शक्ति रूपेण भगवती ।। नमो नमः नमो नमः।। अर्थात , शक्ति का कांची ने नाम कामाक्षी जी, मदुरई में मीनाक्षी, दक्षिण में कन्याकुमारी । यहां के लोगो की मान्यता है, की भगवान शिव का विवाह इसी मंदिर में हुआ था । मां का यह विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडू के मदुरै शहर में है। यह मंदिर मीनाक्षी अम्मन मंदिर प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। माँ मीनाक्षी का यह अम्मन मंदिर को विश्व के नए सात अजूबों के लिए नामित किया गया है। इस मन्दिर का स्थापत्य एवं वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है, जिस कारण यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर स्थित है, एवं इसका कारण इसका विस्मयकारक स्थापत्य ही है।  इस इमारत समूह में 12 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं...

▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬*‼️ॐ श्री श्याम देवाय नमः‼️* *꧁‼️जय श्री श्याम‼️꧂*▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬By वनिता कासनियां पंजाब*लीले घोड़े चढ़कर बाबा,**घूमेगा जब गाँव में!**बिन पायल घुंघरू बजेंगे,**हर प्रेमी के पाँव में!**माँझी की दरकार ना होगी,**फिर किसी भी नाव में!**जब साँवरा नाव तिराये,**मोर छड़ी की छाँव में!* *🙌मेरा श्याम मेरी जिदंगी🙌* *༺꧁जय श्री श्याम꧂༻* *༺꧁जय श्री राम꧂༻*

▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬*‼️ॐ श्री श्याम देवाय नमः‼️* *꧁‼️जय श्री श्याम‼️꧂*▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬ By वनिता कासनियां पंजाब *लीले घोड़े चढ़कर बाबा,**घूमेगा जब गाँव में!**बिन पायल घुंघरू बजेंगे,**हर प्रेमी के पाँव में!**माँझी की दरकार ना होगी,**फिर किसी भी नाव में!**जब साँवरा नाव तिराये,**मोर छड़ी की छाँव में!* *🙌मेरा श्याम मेरी जिदंगी🙌* *༺꧁जय श्री श्याम꧂༻* *༺꧁जय श्री राम꧂༻*

नृसिंह जयंती सभी भक्तों को हार्दिक शुभकामनाएँ जय जय लक्ष्मी नारायण हरे.........#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान🙏🙏❤️नृसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस जयंती का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने 'नृसिंह अवतार' लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए कई अवतार लिए तथा धर्म की स्थापना की।कथा :-नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के इस अवतरण की कथा इस प्रकार है-प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का 'हिरण्यकशिपु ' था।हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरूपाय हो गए थे। वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।भक्त प्रह्लाद का जन्म :-अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नीकयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'प्रह्लाद ' रखा गया। एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था। वह अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था।हिरण्यकशिपु का वध :-भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ। तब उसने प्रह्लाद को मारने के लिए षड्यंत्र रचे, किंतु वह सभी में असफल रहा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था। अपने सभी प्रयासों में असफल होने पर क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी बहनहोलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती, परंतु जब प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया। उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु की पूजा करने लगी थी। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता- "तेरा भगवान कहाँ है?" इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि "प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं।" क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि "क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है?" प्रह्लाद ने हाँ में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्रीनृसिंह ने प्रह्लाद कीभक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को "नृसिंह जयंती-उत्सव" के रूप में मनाया जाता है।नृसिंह भगवान के चर्म को बना लिया भोले ने अपना आसन :-इसके अलावा एक अन्य वजह भी है, जिसके लिए भगवान विष्णु ने ये रूप धरा। बताया जाता है कि हिरण्यकशिपु का वध करने के बाद भगवान नृसिंह का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था। वे पृथ्वी को नष्ट कर देना चाहते हैं। इस बात से परेशान सभी देवता भोलेनाथ की शरण में गए। भोलेनाथ ने नरसिंह भगवान का गुस्सा शांत करने के लिए अपने अंश से उत्पन्न वीरभद्र को भेजा। वीरभ्रद ने काफी कोशिश की, लेकिन जब भगवान नृसिंह नहीं माने तो उन्होंने वीरभद्र गरूड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित शरभ रूप धारण किया।शरभ ने नृसिंह को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार करने लगा। शरभ के वार से आहत होकर नृसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और शिव से निवेदन किया कि इनके चर्म को शिव अपने आसन के रूप में स्वीकार करें। इसके बाद शिव ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया। इसलिए शिव वाघ के खाल पर विराजते हैं। इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष की भी प्राप्ति करता है। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल, फूल और पंचमेवा का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ ही भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।व्रत विधि :-नृसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास एवं पूजा-अर्चना कि जाती है। इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए तथा भगवान नृसिंह की विधी विधान के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए, तत्पश्चात् वेद मंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल , पुष्प , पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल , अक्षत व पीताम्बर रखना चाहिए। गंगाजल , काले तिल, पंच गव्य व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा के पश्चात् एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से नृसिंह भगवान के मंत्र का जप करना चाहिए। इस दिन व्रती को सामर्थ्य अनुसार तिल , स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है। भगवान नृसिंह अपने भक्त की रक्षा करते हैं व उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।#Vnita🙏🙏❤️मंत्र :-नृसिंह #जयंती के दिन निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए-1. ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥2. ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।इन #मंत्रों का #जाप करने से समस्त #दुखों का निवारण होता है तथा #भगवान #नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है।❤️ राधे राधे ❤️

नृसिंह जयंती सभी भक्तों को हार्दिक शुभकामनाएँ  जय जय लक्ष्मी नारायण हरे......... #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान🙏🙏❤️ नृसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस जयंती का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। भगवान श्रीनृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने 'नृसिंह अवतार' लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए कई अवतार लिए तथा धर्म की स्थापना की। कथा :- नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है। नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के इस अवतरण की कथा इस प्रकार है- प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का 'हिरण्यकशिपु ' था। हिरण्याक्ष...

🌹🌹💖💖जय जय श्री राधे गोविन्द देव जी💖💖🌹🌹🌹🌹💖💖💖 जय जय श्री राधे राधे जी💖💖🌹🌹 💖💖 हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!💖💖 💞💞 मेरे राधे गोविन्द... 💞💞💓💓 Զเधे Զเधे जी 💓💓༺🙏༻Զเधे Զเधे जपा करो,श्रीकृष्ण नाम रस पिया करो....༺🙏༻🌹 🙏❣ निरंतर जपते रहें, भजते रहें हरे #कृष्णा ❣🙏🌹ૐ🌋ૐ 🌋ૐ 🌋ૐ 🌋ૐ 🌋ૐ🌋ૐ🌋ૐ🌋ૐ🙏‼❣️ હરે કૃષ્ણ હરે કૃષ્ણ કૃષ્ણ કૃષ્ણ હરે હરે ️❣️‼🙏🙏‼❣️ હરે રામ હરે રામ રામ રામ હરે હરે ❣️‼🙏✤🙏┈┈┈••✦🙏✦••┈┈┈┈┈🙏✤ ༺💥༻🌹 ૐ 🌹༺💥༻ ✤┈┈┈┈┈••✦✦••┈┈┈┈┈✤🌿¸.•*""*•.¸🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌿 🙏‼❣️कृष्ण तेरी बांसुरी बना दे सबको अपना दीवाना । प्रेम की प्रतीक है,जीने की राह दिखाती है तेरी बांसुरी ❣️‼🙏 🙏‼❣️श्याम तेरी बांसुरी मेरी नींद चुराए, मुझे अपना बनाए❣️‼🙏 🙏‼❣️बजे जब तेरी बांसुरी की धुन, सुनकर खो दूं अपनी सुध बुध व मन पशु पक्षी भी मंत्र मुग्ध हो जाएं, झूम झूम नाचें गाएं, बना दे जग को दीवाना ❣️‼🙏 🙏‼❣️तेरी #सांवली सूरत पे कृष्णा,मेरा दिल दीवाना हो गया❣️‼🙏 🙏‼❣️प्रीत लगाकर कान्हा तुमसे, मैं हो गया दीवाना,इक पल भी मुझको चैन ना आए ढूंढूं तुझको सांवरिया ❣️‼🙏 🙏‼❣️प्यारे #कान्हा अब तो आजा,मेरा दिल पुकारे,दरश दिखा दो मोहन प्यारे❣️‼🙏 🙏‼❣️प्यारे कान्हा, बांसुरी ने मेरा मन मोह लिया ,तेरी बांसुरी की धुन ने मेरा सब कुछ हर लिया ❣️‼🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌿¸.•*""*•.¸🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌿🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌿¸.•*""*•.¸🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌿 👣राधे राधे🙏राधे राधे.:-♥️🙏👣 ‼️ जय श्री राधे राधे जी ‼️ 🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹 गुलाब तो नहीं दिया मैंने तुम्हें कभी लेकिन !!* 💖💖 "मोहब्बत गुलाब 🌹देने वालों से ज्यादा की है".. 💖💖 🌹🌹 मेरे प्यारे श्री राधे गोविन्द देव जी🌹🌹... 🌹🙏💖 ॥हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ 💖🙏🌹 🌹💖॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥💖🙏🌹 💕💗*जय जय श्री राधे राधे *💗💕 🌹🌹💖💖 मेरे राधे गोविन्द जी 🙏🙏💖💖🌹🌹 🌹💖 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने॥ 💖🌹 🌹💖 प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥💖🌹 🌹🌹💖💖जय जय श्री राधे कृष्णा जी💖💖🌹🌹🌹🌹💖💖जय जय श्री राधे गोविन्द देव जी💖💖🌹🌹#Vnita🙏🙏❤️❤️ राधे राधे ❤️

🌹🌹💖💖जय जय श्री राधे गोविन्द देव जी💖💖🌹🌹 🌹🌹💖💖💖 जय जय श्री राधे राधे जी💖💖🌹🌹    💖💖 हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!💖💖                                 💞💞 मेरे राधे गोविन्द... 💞💞 💓💓 Զเधे Զเधे जी 💓💓 ༺🙏༻Զเधे Զเधे जपा करो, श्रीकृष्ण नाम रस पिया करो....༺🙏༻ 🌹 🙏❣ निरंतर जपते रहें, भजते रहें हरे #कृष्णा ❣🙏🌹 ૐ🌋ૐ 🌋ૐ 🌋ૐ 🌋ૐ 🌋ૐ🌋ૐ🌋ૐ🌋ૐ 🙏‼❣️ હરે કૃષ્ણ હરે કૃષ્ણ કૃષ્ણ કૃષ્ણ                         હરે હરે ️❣️‼🙏 🙏‼❣️ હરે રામ હરે રામ                   રામ રામ હરે હરે ❣️‼🙏 ✤🙏┈┈┈••✦🙏✦••┈┈┈┈┈🙏✤              ༺💥༻🌹 ૐ 🌹༺💥༻         ✤┈┈┈┈┈••✦✦••┈┈┈┈┈✤ 🌿¸.•*""*•.¸🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌷 ¸.•*""*•.¸ 🌿  🙏‼❣️कृष्ण तेरी बांसुरी बना दे सबको अपना दीवाना ।             ...

#सलाद मांस से 10 गुना #शक्तिशाली #भोज्य पदार्थ है?#वनिता #कासनियां #पंजाब द्वारामांस से 10 गुना शक्तिशाली कौन सा भोज्य पदार्थ है?आज के समय में अधिकांश व्यक्ति उन खाद्य का सेवन करते हैं जिनमें शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व नहीं पाए जाते हैं। इस कारण वे तरह-तरह की परेशानियों का सामना करते है। शारीरिक कमजोरी की समस्या आम हैं। थोड़ा सा काम करने के बाद ही लोग थकावट महसूस करते है। लोग शरीर को ताकतवर बनाने के लिए मांस, मछली, अंडा खाने पर जोर देते हैं। लेकिन शाकाहारी लोग इन चीजों का सेवन नहीं कर सकते। ऐसे में उनके लिए ऐसे खाद्य की आवश्यकता महसूस की जाती है जो मांसाहार के विकल्प के रूप में उन्हें मिले।शाकाहारी हो या मांसाहारी, अगर इस खाद्य का सेवन करें तो उनका शरीर ताकतवर और मजबूत बन जाएगा। और यह कीमत के मामले में मांसाहारी व्यंजनों से काफी किफायती भी है।#मूंग की दाल यासबूत मूंग में मांस से भी दस गुना अधिक प्रोटीन पाया जाता है। कोई इसका लगातार इसका सेवन करे तो यह उनके शरीर ताकतवर और मजबूत बना देता है। रोज इसका सेवन नहीं कर सकते तो भी सप्ताह में एक या दो बार मूंग की दाल का सेवन जरूर करना चाहिए। मूंग की दाल में प्रोटीन के अलावा कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।#शाकाहारी लोगों के लिए मूंग की #दाल एक तरह से मांस का काम करता है। #मूंग की दाल का सेवन कई तरह से किया जा सकता है। साधारण तौर पर मूंग की दाल बनाया जा सकता है। सबूत मूंग को भीगा कर उसके अंकुरण होने पर उसके सलाद बना कर खाया जा सकता है। प्याज, टमाटर, खीरा और नींबू के रस के साथ यह स्वादिष्ट लगता है।वैकल्पिक तौर पर इसे उबल कर भी खाया जा सकता है। बस इसे कम उबलना बेहतर होता है वरना यह पूरी तरह गल जाता है।अनेक #धन्यवाद !!!

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(#असली #शांति ) #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 💖💖💖💖💖💖💖💖💖एक राजा था जिसे #चित्रकला से बहुत प्रेम था। .एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी चित्रकार उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शांति को दर्शाता हो तो वह उसे मुँह माँगा पुरस्कार देगा।.निर्णय वाले दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार पुरस्कार जीतने की लालसा से अपने-अपने चित्र लेकर राजा के महल पहुँचे। .राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो चित्रों को अलग रखवा दिया। अब इन्ही दोनों में से एक को पुरस्कार के लिए चुना जाना था।.पहला चित्र एक अति सुंदर शांत झील का था। उस झील का पानी इतना स्वच्छ था कि उसके अंदर की सतह तक दिखाई दे रही थी। .और उसके आस-पास विद्यमान हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। .ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे। .जो कोई भी इस चित्र को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा कोई चित्र हो ही नहीं सकता। वास्तव में यही शांति का एक मात्र प्रतीक है।.दूसरे चित्र में भी पहाड़ थे, परंतु वे बिलकुल सूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमें बिजलियाँ चमक रहीं थीं….#घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी… तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे… और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था। .जो कोई भी इस चित्र को देखता यही सोचता कि भला इसका ‘शांति’ से क्या लेना देना… इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।.सभी आश्वस्त थे कि पहले चित्र बनाने वाले चित्रकार को ही पुरस्कार मिलेगा। .तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और घोषणा की कि दूसरा चित्र बनाने वाले चित्रकार को वह मुँह माँगा पुरस्कार देंगे। हर कोई आश्चर्य में था!.पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “लेकिन महाराज उस चित्र में ऐसा क्या है जो आपने उसे पुरस्कार देने का फैसला लिया… .जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरा चित्र ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?”.“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा।.दूसरे चित्र के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक ओर झुके इस वृक्ष को देखो। .उसकी डाली पर बने उस घोंसले को देखो… देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेमपूर्वक अपने बच्चों को भोजन करा रही है…”.फिर राजा ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को समझाया, “शांत होने का अर्थ यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो… कोई समस्या नहीं हो… .जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो… जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो… शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केंद्रित रहें… अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें।”.अब सभी समझ चुके थे कि दूसरे चित्र को राजा ने क्यों चुना है।.मित्रों, हर कोई अपने जीवन में शांति चाहता है। परंतु प्राय: हम ‘शांति’ को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं, और उसे दूरस्थ स्थलों में ढूँढते हैं...#Vnita🙏🙏❤️जबकि शांति पूरी तरह से हमारे मन की भीतरी चेतना है, और सत्य यही है कि सभी दुःख-दर्दों, कष्टों और कठिनाइयों के बीच भी शांत रहना ही वास्तव में शांति है।.💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖जय जय #श्री राधे राधे 🌹🌹🙏🏻🙏🏻🌹🌹

(#असली #शांति ) #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 💖💖💖💖💖💖💖💖💖एक राजा था जिसे #चित्रकला से बहुत प्रेम था। .एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी चित्रकार उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शांति को दर्शाता हो तो वह उसे मुँह माँगा पुरस्कार देगा।.निर्णय वाले दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार पुरस्कार जीतने की लालसा से अपने-अपने चित्र लेकर राजा के महल पहुँचे। .राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो चित्रों को अलग रखवा दिया। अब इन्ही दोनों में से एक को पुरस्कार के लिए चुना जाना था।.पहला चित्र एक अति सुंदर शांत झील का था। उस झील का पानी इतना स्वच्छ था कि उसके अंदर की सतह तक दिखाई दे रही थी। .और उसके आस-पास विद्यमान हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। .ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे। .जो कोई भी इस चित्र को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा कोई चित्र हो ही नहीं सकता। वास्तव में यही शांति का एक मात्र प्रतीक है।.दूसरे चित्र में भी प...

ग्रह-नक्षत्र, कर्मफल और सुख-दु:ख क्या है? क्या स्वकर्म से ही बनती है मनुष्य की जन्मकुण्डली!!!!! !By #वनिता #कासनियां #पंजाब🙏🙏❤️मनुष्य के सुख-दु:ख का कारण ग्रह-नक्षत्र हैं या उसके कर्म ? क्या दु:ख नाश के लिए ग्रह-नक्षत्रों की आराधना की जानी चाहिए या अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए ?सबको अपना भविष्य जानने की इच्छा होती है, इसके लिए हम ज्योतिष का सहारा लेते हैं । ज्योतिषशास्त्र कर्मफल बताने की विद्या है । ज्योतिषशास्त्र किसी भी मनुष्य के भावी सुख-दु:ख की भविष्यवाणी करता है और ग्रहों को इसका कारण मानकर ग्रहशान्ति के लिए दान-जप-हवन आदि उपाय बताता है ।कर्मों की गहन गति!!!!!!!!यह संसार मनुष्य की कर्मभूमि और भोगभूमि दोनों है। जन्म-जन्मान्तर में किए हुए समस्त कर्म संस्काररूप से मनुष्य के अंतकरण में एकत्र रहते हैं, उनका नाम ‘संचित कर्म’ है । उनमें से जो वर्तमान जन्म में फल देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं, उनका नाम ‘प्रारब्ध कर्म’ है और वर्तमान समय में किए जाने वाले कर्मों को ‘क्रियमाण कर्म’ कहते हैं । ज्योतिषशास्त्र इन्हीं कर्मों के फल को उसी प्रकार दिखलाता है जैसे अंधेरे में पड़ी हुई वस्तु को दीपक का प्रकाश ।ग्रह-नक्षत्र शुभ-अशुभ फल नहीं देते, मनुष्य के कर्म से मिलता है सुख-दु:खमहाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार एक बार भगवान शंकर से पार्वतीजी ने पूछा—मनुष्यों की जो अच्छी-बुरी अवस्था है, वह सब उनकी अपनी ही करनी का फल है, किन्तु संसार में लोग शुभ-अशुभ कर्म को ग्रहजनित मानकर ग्रह-नक्षत्रों की आराधना करते रहते हैं, क्या यह ठीक है ?भगवान शंकर ने कहा—‘ग्रहों ने कुछ नहीं किया । ग्रह-नक्षत्र शुभ-अशुभ कर्मफल को उपस्थित नहीं करते हैं, अपना ही किया हुआ सारा कर्म शुभ-अशुभ फल देने वाला है ।’शुभ कर्मफल की सूचना शुभ ग्रहों द्वारा और बुरे कर्मों की सूचना अशुभ ग्रहों द्वारा होती है।वास्तव में किसी भी मनुष्य के सुख-दु:ख का कारण ग्रह-नक्षत्र नहीं है । ग्रह कर्मों के फलदाता और कर्मफलों के सूचक हैं। जीवों के कर्मों का फल देने वाले भगवान श्रीविष्णु ही ग्रहरूप में रहते हैं । सूर्य का रामावतार, चन्द्रमा का कृष्णावतार, मंगल का नृसिंहावतार, बुध का बुद्धावतार, बृहस्पति का वामनावतार, शुक्र का परशुरामावतार, शनि का कूर्मावतार, राहु का वराहावतार और केतु का मीनावतार है । (लोमशसंहिता)मनुष्य के कर्मफल का भण्डार अक्षय है उसे भोगने के लिए ही जीव चौरासी लाख योनियों में शरीर धारण करता आ रहा है। इसीलिए मानव शरीर का एक नाम ‘भोगायतन’ है।कर्मफल अटल हैं इन्हें भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता है। हम अपने सुख-दु:ख, सौभाग्य-दुर्भाग्य के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं, इसके लिए विधाता या अन्य किसी को दोष नहीं दिया जा सकता है—ऐसा जानकर शान्त रहना चाहिए।रामचरितमानस में तुलसीदासजी कहते हैं—काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ।निज कृत करम भोग सबु भ्राता ।। (राचमा २।९२।४)प्रकृति ने मानव जीवन में सन्तुलन के लिए यह व्यवस्था की है कि कुण्डली में छ: भाव सुख के व छ: भाव दु:ख के हैं । दु:ख के बीज से सुख का अंकुर फूटता है। सुख के फल में दु:ख की गुठली होती है । सुख-दु:ख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।जैसा बोयेंगे वैसा पायेंगे!!!!!!!जो हम बोते हैं, वही हमें कई गुना होकर वापिस मिलता है । प्रकृति की इस व्यवस्था से सुख बांटने पर वह हमें कई गुना होकर वापिस मिलता है और दूसरों को दु:ख देने पर वह भी कई गुना होकर हमारे पास आता है । जैसे बिना मांगे दु:ख मिलता है, वैसे ही बिना प्रयत्न के सुख मिलता है ।करम प्रधान बिस्व करि राखा ।जो जस करइ तो तस फलु चाखा ।। (राचमा २।२१९।४)जब सुख-दु:ख हमारे ही कर्मों का फल है तो सुख आने पर हम क्यों फूल जाएं और दु:ख पड़ने पर मुरझाएं क्यों ? क्योंकि सुख-दु:ख सदा रहने वाले नहीं और क्षण-क्षण में बदलने वाले हैं । सुख-दु:ख जब अपनी ही करनी का फल हैं तो एक के साथ राग और दूसरे के साथ द्वेष किसलिए ? गीता में भगवान कहते हैं—इहैव तैर्जित सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: । (५। १९)अर्थात्—जिन लोगों के मन में सुख-दु:ख के भोग में समता आ गई है उन्होंने तो इसी जन्म में और इसी शरीर से ही संसार को जीत लिया और वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो गए ।मनुष्य स्वयं भाग्यविधाता!!!!!!!भाग्य का विधान अटल है । जितने भी ज्योतिषीय उपाय हैं, वे सब तात्कालिक हैं । मनुष्य यदि अपने को एक खूंटे (इष्टदेव) से बांध ले और ध्यान-जप, सत्कर्म और ईश्वरभक्ति को अपना ले तो जीवन में सब कुछ शुभ ही होगा । कर्म रूपी पुरुषार्थ से ही मनचाहे फल की प्राप्ति होती है । मनुष्य स्वयं भाग्यविधाता है काल तो केवल कर्मफल को प्रस्तुत कर देता है ।यदि मनुष्य जन्म-मरण के जंजाल से छूटना चाहता है तो भगवान ने उसका भी रास्ता गीता में बताया है—‘ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरते तथा ।’ (अध्याय ४। ३७)ज्ञानरूपी अग्नि संचित कर्म के बड़े-से-बड़े भण्डार को क्षणभर में जला डालती है । ज्ञान की चिनगारी जब पाप के ईंधन पर गिरती है तो पाप जलते हैं । ज्ञान को अपनाने पर कर्म सुधरेंगे । तत्वज्ञान होने से कर्म वास्तव में कर्म नहीं रह जाते तब उनका फल तो कैसे ही हो सकता है ? अत: समस्त कर्मों के साथ उनका कर्मफल भी मिट जाता है और जीव को पुन: शरीर धारण नहीं करना पड़ता ।यह ज्ञान क्या है? यह है— हम भगवान के हैं, वे हमारे हैं, फिर उनसे हमारा भेद क्या? हम दासत्व स्वीकार कर लें और जो कुछ करें उनके लिए करें (सब कर्म कृष्णार्पण कर दें) या फल की भावना का त्याग कर दें नहीं तो कर्म रूपी भयंकर सर्प काटता ही रहेगा। करने में सावधान रहें और जो हो जाए उसमें प्रसन्न रहे एवं भगवन्नाम जपते रहें, आप एक सच्चे कर्मयोगी बन जाएंगे।कर से कर्म करो विधि नाना ।मन राखो जहां कृपा निधाना ।।प्रभु बैठे आकाश में लेकर कलम दवात।खाते में वह हर घड़ी लिखते सबकी बात ।।मेरे मालिक की दुकान में सब लोगों का खाता ।जितना जिसके भाग्य में होता वह उतना ही पाता ।।क्या साधु क्या संत, गृहस्थी, क्या राजा क्या रानी ।प्रभु की पुस्तक में लिखी है सबकी कर्म कहानी ।।सभी जनों के जमाखर्च का सही हिसाब लगाता ।बड़े-बड़े कानून प्रभु के, बड़ी बड़ी मर्यादा ।।किसी को कौड़ी कम नहीं देता और न दमड़ी ज्यादा ।इसीलिए तो दुनिया में वह जगतसेठ कहलाता ।।करते हैं सभी फैसले प्रभु आसन पर डट के ।उनके फैसले कभी न बदले, लाख कोई सर पटके ।।समझदार तो चुप रहता है, मूर्ख शोर मचाता ।अच्छी करनी करो चतुरजन, कर्म न करियो काला ।।धर्म कर्म मत भूलो रे भैया, समय गुजरता जाता ।मेरे मालिक की दुकान में सब लोगों का खाता ।।

ग्रह-नक्षत्र, कर्मफल और सुख-दु:ख क्या है? क्या स्वकर्म से ही बनती है मनुष्य की जन्म   कुण्डली!!!!!! By #वनिता #कासनियां #पंजाब🙏🙏❤️मनुष्य के सुख-दु:ख का कारण ग्रह-नक्षत्र हैं या उसके कर्म ? क्या दु:ख नाश के लिए ग्रह-नक्षत्रों की आराधना की जानी चाहिए या अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए ?सबको अपना भविष्य जानने की इच्छा होती है, इसके लिए हम ज्योतिष का सहारा लेते हैं । ज्योतिषशास्त्र कर्मफल बताने की विद्या है । ज्योतिषशास्त्र किसी भी मनुष्य के भावी सुख-दु:ख की भविष्यवाणी करता है और ग्रहों को इसका कारण मानकर ग्रहशान्ति के लिए दान-जप-हवन आदि उपाय बताता है ।कर्मों की गहन गति!!!!!!!!यह संसार मनुष्य की कर्मभूमि और भोगभूमि दोनों है। जन्म-जन्मान्तर में किए हुए समस्त कर्म संस्काररूप से मनुष्य के अंतकरण में एकत्र रहते हैं, उनका नाम ‘संचित कर्म’ है । उनमें से जो वर्तमान जन्म में फल देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं, उनका नाम ‘प्रारब्ध कर्म’ है और वर्तमान समय में किए जाने वाले कर्मों को ‘क्रियमाण कर्म’ कहते हैं । ज्योतिषशास्त्र इन्हीं कर्मों के फल को उसी प्रकार दिखलाता है जैसे अंधेरे में पड़ी...

(#असली #शांति )#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान 💖💖💖💖💖💖💖💖💖एक राजा था जिसे #चित्रकला से बहुत प्रेम था। .एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी चित्रकार उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शांति को दर्शाता हो तो वह उसे मुँह माँगा पुरस्कार देगा।.निर्णय वाले दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार पुरस्कार जीतने की लालसा से अपने-अपने चित्र लेकर राजा के महल पहुँचे। .राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो चित्रों को अलग रखवा दिया। अब इन्ही दोनों में से एक को पुरस्कार के लिए चुना जाना था।.पहला चित्र एक अति सुंदर शांत झील का था। उस झील का पानी इतना स्वच्छ था कि उसके अंदर की सतह तक दिखाई दे रही थी। .और उसके आस-पास विद्यमान हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। .ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे। .जो कोई भी इस चित्र को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा कोई चित्र हो ही नहीं सकता। वास्तव में यही शांति का एक मात्र प्रतीक है।.दूसरे चित्र में भी पहाड़ थे, परंतु वे बिलकुल सूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमें बिजलियाँ चमक रहीं थीं….#घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी… तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे… और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था। .जो कोई भी इस चित्र को देखता यही सोचता कि भला इसका ‘शांति’ से क्या लेना देना… इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।.सभी आश्वस्त थे कि पहले चित्र बनाने वाले चित्रकार को ही पुरस्कार मिलेगा। .तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और घोषणा की कि दूसरा चित्र बनाने वाले चित्रकार को वह मुँह माँगा पुरस्कार देंगे। हर कोई आश्चर्य में था!.पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “लेकिन महाराज उस चित्र में ऐसा क्या है जो आपने उसे पुरस्कार देने का फैसला लिया… .जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरा चित्र ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?”.“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा।.दूसरे चित्र के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक ओर झुके इस वृक्ष को देखो। .उसकी डाली पर बने उस घोंसले को देखो… देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेमपूर्वक अपने बच्चों को भोजन करा रही है…”.फिर राजा ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को समझाया, “शांत होने का अर्थ यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो… कोई समस्या नहीं हो… .जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो… जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो… शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केंद्रित रहें… अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें।”.अब सभी समझ चुके थे कि दूसरे चित्र को राजा ने क्यों चुना है।.मित्रों, हर कोई अपने जीवन में शांति चाहता है। परंतु प्राय: हम ‘शांति’ को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं, और उसे दूरस्थ स्थलों में ढूँढते हैं...#Vnita🙏🙏❤️जबकि शांति पूरी तरह से हमारे मन की भीतरी चेतना है, और सत्य यही है कि सभी दुःख-दर्दों, कष्टों और कठिनाइयों के बीच भी शांत रहना ही वास्तव में शांति है।.💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖जय जय #श्री राधे राधे 🌹🌹🙏🏻🙏🏻🌹🌹

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हम भगवान को रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो ईश्वर की बनाई हुई है, जो ईश्वर को भेंट करते हैं, लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै ईश्वर को दे रहा हूँ, और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें, ऎसा करना और सोचना मूर्खतापूर्ण हैं... 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 हम यह नहीं समझते कि ये सब उनका ही है, और उनको इन सब चीजो कि कोई जरुरत भी नही, अगर उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, अपना विश्वास दिजिए, अपने हर एक श्वास मे याद करो, तभी प्रभु जरुर खुश होगें, भाव से किया गया सत्संग, सत्कर्म प्रभु के निकट पहुंचने का द्वार हैं... 🌹🌹🌹🌹 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 इस जीवन की चादर में... ❣️सांसों के ताने बाने हैं... ❣️दुख की थोड़ी सी सलवट है...... ❣️तो सुख के कुछ फूल सुहाने हैं.क्यों सोचु आगे क्या होगा.....❣️कल का क्या ठिकाना..❣️ऊपर बैठा बाजीगर ने...... ❣️न जाने क्या मन में ठाना है...... ❣️चाहे जितना भी जतन करके... भरले दामन तारों से... ❣️झोली में वो ही आएँगे...... ❣️जो तेरे नाम के दाने है..❣️ 💞🍂💞🍂💞🍂💞🍂💞#Vnita🙏❤️❣️राधे राधे ❣️❣️जय श्री कृष्ण.....💞🙏🏻💞🙏🏻💞

हम भगवान को रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो ईश्वर की बनाई हुई है, जो ईश्वर को भेंट करते हैं, लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै ईश्वर को दे रहा हूँ, और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें, ऎसा करना और सोचना मूर्खतापूर्ण हैं... 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 हम यह नहीं समझते कि ये सब उनका ही है, और उनको इन सब चीजो कि कोई जरुरत भी नही, अगर उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, अपना विश्वास दिजिए, अपने हर एक श्वास मे याद करो, तभी प्रभु जरुर खुश होगें, भाव से किया गया सत्संग, सत्कर्म प्रभु के निकट पहुंचने का द्वार हैं... 🌹🌹🌹🌹 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 इस जीवन की चादर में... ❣️सांसों के ताने बाने हैं... ❣️दुख की थोड़ी सी सलवट है...... ❣️तो सुख के कुछ फूल सुहाने हैं.क्यों सोचु आगे क्या होगा.....❣️कल का क्या ठिकाना..❣️ऊपर बैठा बाजीगर ने...... ❣️न जाने क्या मन में ठाना है...... ❣️चाहे जितना भी जतन करके... भरले दामन तारों से... ❣️झोली में वो ही आएँगे...... ❣️जो तेरे नाम के दाने है..❣️ 💞🍂💞🍂💞🍂💞🍂💞#Vnita🙏❤️❣️राधे राधे ❣️❣️जय श्री कृष्ण.....💞🙏🏻...

हम भगवान को रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो ईश्वर की बनाई हुई है, जो ईश्वर को भेंट करते हैं, लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै ईश्वर को दे रहा हूँ, और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें, ऎसा करना और सोचना मूर्खतापूर्ण हैं... 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 हम यह नहीं समझते कि ये सब उनका ही है, और उनको इन सब चीजो कि कोई जरुरत भी नही, अगर उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, अपना विश्वास दिजिए, अपने हर एक श्वास मे याद करो, तभी प्रभु जरुर खुश होगें, भाव से किया गया सत्संग, सत्कर्म प्रभु के निकट पहुंचने का द्वार हैं... 🌹🌹🌹🌹 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 इस जीवन की चादर में... ❣️ सांसों के ताने बाने हैं... ❣️ दुख की थोड़ी सी सलवट है...... ❣️ तो सुख के कुछ फूल सुहाने हैं. क्यों सोचु आगे क्या होगा.....❣️ कल का क्या ठिकाना..❣️ ऊपर बैठा बाजीगर ने...... ❣️ न जाने क्या मन में ठाना है...... ❣️ चाहे जितना भी जतन करके... भरले दामन तारों से... ❣️ झोली में वो ही आएँगे...... ❣️ जो तेरे नाम के दाने है..❣️ 💞🍂💞🍂💞🍂💞🍂💞 #Vnita🙏❤️ ❣️राधे राधे ❣️ ❣️जय श्री कृष्ण.....💞🙏🏻💞🙏🏻💞

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