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नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां_पंजाब #संगरिया #राजस्थानजो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं और सबका बहुत ध्यान रखते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । नन्दबाबा के सौभाग्य को दर्शाने वाला एक सुन्दर श्लोक है—श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता: ।अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परब्रह्म ।।अर्थात्—संसार से भयभीत होकर कोई श्रुति (वेद) का आश्रय ले, तो दूसरा स्मृति (उपनिषदों) की शरण ग्रहण करे तो कोई तीसरा महाभारत (ग्रन्थ) की शरण में जाए; परन्तु हम तो नन्दबाबा की चरण-वन्दना करते हैं, जिनके आंगन में साक्षात् परब्रह्म श्रीकृष्ण खेलते हैं ।नन्दबाबा है श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता!!!!!!गोलोक में #नन्दबाबा #भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, #गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया।भगवान के नित्य-जन जब पृथ्वी पर पधारते हैं तो कोई-न-कोई प्राणी जो उनका अंश रूप होता है, उनसे एकाकार हो जाता है; इसीलिए पूर्वकल्प में वसु नाम के द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवी ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वर मांगा कि ‘जब श्रीहरि पृथ्वी पर प्रकट हों, तब हमारा उनमें पुत्र-भाव हो ।’ ब्रह्माजी के वरदान से द्रोण व्रज में नन्द हुए और धरादेवी यशोदा हुईं ।नन्दबाबा, वसुदेवजी और नौ नन्दयदुवंश के राजा देवमीढ़ मथुरा में रहते थे । उनकी दो पत्नियां थी । पहली पत्नी क्षत्रियकन्या थी जिनके पुत्र हुए शूरसेन और शूरसेन के पुत्र थे वसुदेवजी । राजा देवमीढ़ की दूसरी पत्नी वैश्यपुत्री थी जिनके पुत्र का नाम था पर्जन्य । इन्होंने यमुना के पार महावन में अपना निवास बनाया। ये व्रजमण्डल के सबसे बड़े माननीय गोप थे । इनके नौ पुत्र हुए जिन्हें ‘नौ नन्द’ कहा जाता है, जिनके नाम हैं—धरानन्द,ध्रुवनन्द,उपनन्द,अभिनन्द,नन्द,सुनन्द,कर्मानन्द,धर्मानन्द, और बल्लभजी।मझले होने पर भी भाइयों की सम्मत्ति से नन्दजी ‘व्रजेश्वर’—गोपों के नायक बने । प्रत्येक गोप के पास हजारों गौएं होती थीं । जहां गौएं रहती थीं, उसे ‘गोकुल’ कहते थे । नौ लाख गायों के स्वामी को ‘नन्द’ कहा जाता था।वसुदेवजी नन्दबाबा के भाई ही लगते थे और उनसे नन्दबाबा की बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी । जब मथुरा में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा, तब वसुदेवजी ने अपनी पत्नी रोहिणीजी को नन्दजी के यहां भेज दिया । श्रीकृष्ण को भी वसुदेवजी चुपचाप नन्दगृह में रख आए ।नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!!!गोपराज नन्द समस्त समृद्धियों से सम्पन्न थे, पर उनके कोई पुत्र नहीं था । आयु का चौथापन था इसलिए उपनन्द आदि वृद्ध गोपों ने एक पुत्रेष्टि-यज्ञ का आयोजन किया । इधर बाहर यज्ञमण्डप ब्राह्मणों की वेदध्वनि से मुखरित था, उधर अंत:पुर में गोपराज नन्द यशोदाजी से कह रहे थे–’व्रजरानी ! मैं जिसको सदा अपने पुत्र के रूप में देखता हूँ, मैंने जिसको अपने मनोरथ पर बैठाया है और जिसको स्वप्न में देखा है, वह ‘अचल’ है । ऐसी असम्भव बात कहना पागलपन ही माना जाएगा । सुनो, मैं अपने मनोरथ में और स्वप्न में देखता हूँ दिव्यातिदिव्य नीलमणि सदृश्य श्यामसुन्दर वर्ण का एक बालक, जिसके चंचल नेत्र अत्यन्त विशाल हैं, वह तुम्हारी गोद में बैठकर भांति-भांति के खेल कर रहा है । उसे देखकर मैं अपने आपको खो देता हूँ । यशोदे ! सत्य बताओ, क्या कभी तुमने भी स्वप्न में इस बालक को देखा है ?’गोपराज की बात सुनकर यशोदाजी आनन्दविह्वल होकर कहने लगीं–’व्रजराज ! मैं भी ठीक ऐसे ही बालक को सदा अपनी गोद में खेलते देखती हूँ । मैंने भी अति असंभव समझकर कभी आपको यह बात नहीं बतायी । कहां मैं क्षुद्र स्त्री और कहां दिव्य नीलमणि ।’ नन्दबाबा ने कहा–भगवान नारायण की कृपादृष्टि से इस दुर्लभ-सी मनोकामना का पूर्ण होना असंभव नहीं है । अत: नन्द-दम्पत्ति ने एक वर्ष के लिए श्रीहरि को अत्यन्त प्रिय द्वादशी तिथि के व्रत का नियम ले लिया ।नन्द-यशोदा के द्वादशी-व्रत की संख्या बढ़ने के साथ-ही-साथ स्वप्न में देखे हुए परम सुन्दर दिव्य बालक को पुत्र रूप में प्राप्त करने की लालसा भी बढ़ती गई । व्रत-अनुष्ठान पूर्ण होने पर एक दिन उन्होंने अपने इष्टदेव चतुर्भुज नारायण को स्वप्न में उनसे कहते सुना–’द्रोण और धरारूप से तप करके तुम दोनों जिस फल को प्राप्त करना चाहते थे, उसी फल का आस्वादन करने के लिए तुम दोनों स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हुए हो। शीघ्र ही तुम लोगों का वह सुन्दर मनोरथ सफल होगा।’ भगवान के वचनों को सुनकर नन्द-यशोदा उस सुन्दर बालक को पुत्ररूप में प्राप्त करने की प्रतीक्षा करने लगे ।भगवान पहले नन्दबाबा के हृदय में आए और फिर स्वप्न में दीखा हुआ बालक एक बिजली-सी चमकती हुई बालिका के साथ नन्दहृदय से निकल कर यशोदाजी के हृदय में प्रवेश कर गया । आठ महीनों के बाद भाद्रप्रद मास की कृष्णाष्टमी के दिन नन्दनन्दन का प्राकट्य हो गया और व्रजराज का वंश चलने से व्रज को आधार-स्तम्भ मिल गया ।नन्दबाबा को हुआ श्रीकृष्ण के स्वरूप का ज्ञान!!!!!!एक दिन नन्दबाबा एकादशी का व्रत करके द्वादशी के दिन आधी रात को यमुना में स्नान करने आए । उस समय वरुण के दूतों ने उन्हें पकड़ लिया और वरुणलोक में ले गए । दूसरे दिन प्रात:काल गोप नन्दजी को नहीं देखकर विलाप करने लगे । सर्वान्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण सब बातें जान कर वरुण लोक गए । वहां वरुणदेव ने उनकी पूजा की और अपने दूतों की धृष्टता के लिए माफी मांगी । तब भगवान नन्दबाबा को लेकर व्रज में आए तो उन्हें विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण देवताओं के कार्य के लिए अवतीर्ण होने वाले साक्षात् पुरुषोत्तम ही हैं ।इसी प्रकार एक बार नन्दजी शिवरात्रि को सब गोपों के साथ अम्बिकावन में देवीपूजा के लिए गए । वहां रात्रि में सोते समय नन्दजी को एक अजगर ने पकड़ लिया । गोपों ने उसे जलती लकड़ी से बहुत मारा, पर वह गया नहीं । तब भगवान श्रीकृष्ण ने पैर के अंगूठे से उसे छू दिया । छूते ही वह गन्धर्व बन गया और उसकी सद्गति हो गयी ।श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से विरह में व्रजवासियों की बड़ी आर्त दशा हो गई । एक दिन श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा ज्ञानी उद्धव से कहा–हे उद्धव ! तुम शीघ्र ही व्रज जाओ, ब्रह्मज्ञान का संदेश सुनाकर व्रजवासियों का ताप हरो । उद्धवजी व्रज में आए और दस मास यहीं रहे । नन्दबाबा से विदा लेते समय उद्धवजी ने उन्हें समझाने की चेष्टा की—‘श्रीकृष्ण किसी के पुत्र नहीं हैं, वे तो स्वयं भगवान हैं ।’ पिता के वात्सल्य से अभिभूत नन्दबाबा ने कहा–’तुम्हारे मत से श्रीकृष्ण ईश्वर हैं, अच्छा, वैसा ही हो । उस कृष्णरूपी परमेश्वर में मेरी रति और मति सदैव लगीं रहे।’ ऐसा कहते ही नन्दरायजी की आंखों से अश्रुओं की झड़ी लग गई।नन्दबाबा वात्सल्यरस के अधिदेवता!!!!!एक बार सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में पूरा व्रजमण्डल और द्वारकावासी एकत्र हुए । उस समय का कितना करुणापूर्ण दृश्य था जब नन्दबाबा ने अपने प्यारे कन्हैया को गोदी में बिठाकर उनका मुख चूमा । उस चुम्बन में कितनी विरह-वेदना, कितनी अतीत की स्मृतियां बसीं थीं इसे कौन जान सकता है ? कुरुक्षेत्र से लौटने पर भगवान श्रीकृष्ण के निज धाम पधारने पर व्रजमण्डल, ग्वाल-बाल, गोप-गोपियां, गौ-बछड़े, दिव्य वृक्ष, लता आदि नन्दबाबा के साथ अपने सनातन गोलोक को चले गए, जहां न बुढ़ापा है न रोग, न ही है मृत्यु का भय । बस है तो चारों तरफ सच्चिदानन्द आनन्दघन श्रीकृष्ण का आनन्द-ही-आनन्द।#वनिता_कासनियां_पंजाब 🙏🙏❤️❤️ राधे राधे ❤️मैं कभी जन्मा नहीं.... मैं अमर हूँ पार्थ,मैं ही सबसे पहले हूँ,, और मैं ही सबके बाद...!!🙏 🙏🌹जय #श्री #राधे #कृष्णा 🌹🙏🙏

नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां_पंजाब #संगरिया #राजस्थानजो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं और सबका बहुत ध्यान रखते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । नन्दबाबा के सौभाग्य को दर्शाने वाला एक सुन्दर श्लोक है—श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता: ।अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परब्रह्म ।।अर्थात्—संसार से भयभीत होकर कोई श्रुति (वेद) का आश्रय ले, तो दूसरा स्मृति (उपनिषदों) की शरण ग्रहण करे तो कोई तीसरा महाभारत (ग्रन्थ) की शरण में जाए; परन्तु हम तो नन्दबाबा की चरण-वन्दना करते हैं, जिनके आंगन में साक्षात् परब्रह्म श्रीकृष्ण खेलते हैं ।नन्दबाबा है श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता!!!!!!गोलोक में #नन्दबाबा #भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, #गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया।भगवान के नित्य-जन जब पृथ्वी पर पधारते हैं तो कोई-न-कोई प्राणी जो उनका अंश रूप होता है, उनसे एकाकार हो जाता है; इसीलिए पूर्वकल्प में वसु नाम के द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवी ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वर मांगा कि ‘जब श्रीहरि पृथ्वी पर प्रकट हों, तब हमारा उनमें पुत्र-भाव हो ।’ ब्रह्माजी के वरदान से द्रोण व्रज में नन्द हुए और धरादेवी यशोदा हुईं ।नन्दबाबा, वसुदेवजी और नौ नन्दयदुवंश के राजा देवमीढ़ मथुरा में रहते थे । उनकी दो पत्नियां थी । पहली पत्नी क्षत्रियकन्या थी जिनके पुत्र हुए शूरसेन और शूरसेन के पुत्र थे वसुदेवजी । राजा देवमीढ़ की दूसरी पत्नी वैश्यपुत्री थी जिनके पुत्र का नाम था पर्जन्य । इन्होंने यमुना के पार महावन में अपना निवास बनाया। ये व्रजमण्डल के सबसे बड़े माननीय गोप थे । इनके नौ पुत्र हुए जिन्हें ‘नौ नन्द’ कहा जाता है, जिनके नाम हैं—धरानन्द,ध्रुवनन्द,उपनन्द,अभिनन्द,नन्द,सुनन्द,कर्मानन्द,धर्मानन्द, और बल्लभजी।मझले होने पर भी भाइयों की सम्मत्ति से नन्दजी ‘व्रजेश्वर’—गोपों के नायक बने । प्रत्येक गोप के पास हजारों गौएं होती थीं । जहां गौएं रहती थीं, उसे ‘गोकुल’ कहते थे । नौ लाख गायों के स्वामी को ‘नन्द’ कहा जाता था।वसुदेवजी नन्दबाबा के भाई ही लगते थे और उनसे नन्दबाबा की बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी । जब मथुरा में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा, तब वसुदेवजी ने अपनी पत्नी रोहिणीजी को नन्दजी के यहां भेज दिया । श्रीकृष्ण को भी वसुदेवजी चुपचाप नन्दगृह में रख आए ।नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!!!गोपराज नन्द समस्त समृद्धियों से सम्पन्न थे, पर उनके कोई पुत्र नहीं था । आयु का चौथापन था इसलिए उपनन्द आदि वृद्ध गोपों ने एक पुत्रेष्टि-यज्ञ का आयोजन किया । इधर बाहर यज्ञमण्डप ब्राह्मणों की वेदध्वनि से मुखरित था, उधर अंत:पुर में गोपराज नन्द यशोदाजी से कह रहे थे–’व्रजरानी ! मैं जिसको सदा अपने पुत्र के रूप में देखता हूँ, मैंने जिसको अपने मनोरथ पर बैठाया है और जिसको स्वप्न में देखा है, वह ‘अचल’ है । ऐसी असम्भव बात कहना पागलपन ही माना जाएगा । सुनो, मैं अपने मनोरथ में और स्वप्न में देखता हूँ दिव्यातिदिव्य नीलमणि सदृश्य श्यामसुन्दर वर्ण का एक बालक, जिसके चंचल नेत्र अत्यन्त विशाल हैं, वह तुम्हारी गोद में बैठकर भांति-भांति के खेल कर रहा है । उसे देखकर मैं अपने आपको खो देता हूँ । यशोदे ! सत्य बताओ, क्या कभी तुमने भी स्वप्न में इस बालक को देखा है ?’गोपराज की बात सुनकर यशोदाजी आनन्दविह्वल होकर कहने लगीं–’व्रजराज ! मैं भी ठीक ऐसे ही बालक को सदा अपनी गोद में खेलते देखती हूँ । मैंने भी अति असंभव समझकर कभी आपको यह बात नहीं बतायी । कहां मैं क्षुद्र स्त्री और कहां दिव्य नीलमणि ।’ नन्दबाबा ने कहा–भगवान नारायण की कृपादृष्टि से इस दुर्लभ-सी मनोकामना का पूर्ण होना असंभव नहीं है । अत: नन्द-दम्पत्ति ने एक वर्ष के लिए श्रीहरि को अत्यन्त प्रिय द्वादशी तिथि के व्रत का नियम ले लिया ।नन्द-यशोदा के द्वादशी-व्रत की संख्या बढ़ने के साथ-ही-साथ स्वप्न में देखे हुए परम सुन्दर दिव्य बालक को पुत्र रूप में प्राप्त करने की लालसा भी बढ़ती गई । व्रत-अनुष्ठान पूर्ण होने पर एक दिन उन्होंने अपने इष्टदेव चतुर्भुज नारायण को स्वप्न में उनसे कहते सुना–’द्रोण और धरारूप से तप करके तुम दोनों जिस फल को प्राप्त करना चाहते थे, उसी फल का आस्वादन करने के लिए तुम दोनों स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हुए हो। शीघ्र ही तुम लोगों का वह सुन्दर मनोरथ सफल होगा।’ भगवान के वचनों को सुनकर नन्द-यशोदा उस सुन्दर बालक को पुत्ररूप में प्राप्त करने की प्रतीक्षा करने लगे ।भगवान पहले नन्दबाबा के हृदय में आए और फिर स्वप्न में दीखा हुआ बालक एक बिजली-सी चमकती हुई बालिका के साथ नन्दहृदय से निकल कर यशोदाजी के हृदय में प्रवेश कर गया । आठ महीनों के बाद भाद्रप्रद मास की कृष्णाष्टमी के दिन नन्दनन्दन का प्राकट्य हो गया और व्रजराज का वंश चलने से व्रज को आधार-स्तम्भ मिल गया ।नन्दबाबा को हुआ श्रीकृष्ण के स्वरूप का ज्ञान!!!!!!एक दिन नन्दबाबा एकादशी का व्रत करके द्वादशी के दिन आधी रात को यमुना में स्नान करने आए । उस समय वरुण के दूतों ने उन्हें पकड़ लिया और वरुणलोक में ले गए । दूसरे दिन प्रात:काल गोप नन्दजी को नहीं देखकर विलाप करने लगे । सर्वान्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण सब बातें जान कर वरुण लोक गए । वहां वरुणदेव ने उनकी पूजा की और अपने दूतों की धृष्टता के लिए माफी मांगी । तब भगवान नन्दबाबा को लेकर व्रज में आए तो उन्हें विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण देवताओं के कार्य के लिए अवतीर्ण होने वाले साक्षात् पुरुषोत्तम ही हैं ।इसी प्रकार एक बार नन्दजी शिवरात्रि को सब गोपों के साथ अम्बिकावन में देवीपूजा के लिए गए । वहां रात्रि में सोते समय नन्दजी को एक अजगर ने पकड़ लिया । गोपों ने उसे जलती लकड़ी से बहुत मारा, पर वह गया नहीं । तब भगवान श्रीकृष्ण ने पैर के अंगूठे से उसे छू दिया । छूते ही वह गन्धर्व बन गया और उसकी सद्गति हो गयी ।श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से विरह में व्रजवासियों की बड़ी आर्त दशा हो गई । एक दिन श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा ज्ञानी उद्धव से कहा–हे उद्धव ! तुम शीघ्र ही व्रज जाओ, ब्रह्मज्ञान का संदेश सुनाकर व्रजवासियों का ताप हरो । उद्धवजी व्रज में आए और दस मास यहीं रहे । नन्दबाबा से विदा लेते समय उद्धवजी ने उन्हें समझाने की चेष्टा की—‘श्रीकृष्ण किसी के पुत्र नहीं हैं, वे तो स्वयं भगवान हैं ।’ पिता के वात्सल्य से अभिभूत नन्दबाबा ने कहा–’तुम्हारे मत से श्रीकृष्ण ईश्वर हैं, अच्छा, वैसा ही हो । उस कृष्णरूपी परमेश्वर में मेरी रति और मति सदैव लगीं रहे।’ ऐसा कहते ही नन्दरायजी की आंखों से अश्रुओं की झड़ी लग गई।नन्दबाबा वात्सल्यरस के अधिदेवता!!!!!एक बार सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में पूरा व्रजमण्डल और द्वारकावासी एकत्र हुए । उस समय का कितना करुणापूर्ण दृश्य था जब नन्दबाबा ने अपने प्यारे कन्हैया को गोदी में बिठाकर उनका मुख चूमा । उस चुम्बन में कितनी विरह-वेदना, कितनी अतीत की स्मृतियां बसीं थीं इसे कौन जान सकता है ? कुरुक्षेत्र से लौटने पर भगवान श्रीकृष्ण के निज धाम पधारने पर व्रजमण्डल, ग्वाल-बाल, गोप-गोपियां, गौ-बछड़े, दिव्य वृक्ष, लता आदि नन्दबाबा के साथ अपने सनातन गोलोक को चले गए, जहां न बुढ़ापा है न रोग, न ही है मृत्यु का भय । बस है तो चारों तरफ सच्चिदानन्द आनन्दघन श्रीकृष्ण का आनन्द-ही-आनन्द।

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#देवशयनी_एकादशी_की_व्रत_कथापौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग के समय में एक अत्यंत पराक्रमी एवं धर्मनिष्ठ राजा मांधाता राज्य किया करते थे। उनके राज्य में प्रजागण अत्यंत सुखी, संपन्न और #धर्म परायण थे। इसी कारण राजा ने वहां पर बिना किसी समस्या के कई वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया।लेकिन इस #परिदृश्य में बदलाव तब आया जब वहां तीन वर्षों तक बारिश की एक बूंद भी नहीं पड़ी और पूरे राज्य में सूखा पड़ गया। पूरा राज्य अकाल की भयंकर समस्या से जूझने लगा और इन तीन वर्षों में अन्न और फलों का एक दाना भी नहीं उपजा। ऐसे में राजा की धर्मनिष्ठा और प्रजा वत्सलता पर भी प्रश्न उठने लगे।इन विषम परिस्थितियों से थक-हार कर आखिरकार सभी प्रजागण राजा के पास सहायता मांगने पहुंच गए। उन सभी ने राजा के समक्ष हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहा कि- हे राजन, हमारे पास अब केवल आपका ही सहारा है, इसलिए हम आपकी शरण में आए हैं, कृपया इस कठिन परिस्थिति में हमारी मदद एवं रक्षा करें।प्रजा की प्रार्थना सुनकर राजा ने कहा कि, शास्त्रों में वर्णित है कि यदि कोई राजा अधर्म का अनुसरण करता है तो उसका दंड उसकी प्रजा को भुगतना पड़ता है। मैं अपने भूत और वर्तमान पर गहरा चिंतन कर चुका हूं, लेकिन मुझे फिर भी ऐसा कोई पाप याद नहीं आ रहा, लेकिन फिर भी प्रजा के हित के लिए मैं इस स्थिति का निवारण अवश्य करूंगा।यह संकल्प लेकर राजा अपनी सेना के साथ वन की ओर निकल पड़े। जंगल में विचरण करते हुए, वे अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंच गए। राजा ने ऋषि को प्रणाम किया और ऋषिवर ने राजा को आर्शीवाद देते हुए, जंगल में आने का कारण पूछा। राजा ने बड़े दुखी मन से ऋषि मुनि को अपनी समस्या बताई।राजा की इस विषम स्थिति को देखकर ऋषि अंगिरा ने कहा, हे राजन वर्तमान सतयुग में मात्र ब्राह्मणों को ही वैदिक तपस्या की अनुमति दी जाती है लेकिन आपके राज्य में एक शुद्र है जो इस समय घोर तपस्या में लीन है। उसकी तपस्या के कारण ही तुम्हारे राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।अगर आप उस शुद्र को मृत्यु दंड दे देंगे तो आपके राज्य में पुनः वर्षा एवं सुख-समृद्धि का आगमन होगा। ऋषि की बात सुनकर राजा ने हाथ जोड़कर कहा, हे ऋषिवर मैं एक अपराध मुक्त तपस्वी को दंड नहीं दे पाऊंगा। आप कृपा करके मुझे कोई और उपाय बताएं।राजा की #आत्मीयता को देखकर ऋषि अंगिरा अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने कहा- हे राजन आप अपने परिवार और समस्त प्रजा सहित आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली शयनी एकादशी का नियम पूर्वक पालन करें। इसके प्रभाव से आपके राज्य में प्रचुर मात्रा में वर्षा होगी और आपके भंडार धन-धान्य से समृद्ध हो जाएंगे।ऋषि अंगिरा के वचन से संतुष्ट और प्रसन्न होकर राजा ने ऋषि को प्रणाम किया और अपनी सेना के साथ अपने राज्य लौट आए। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में जब शयनी एकादशी आई तो राजा ने समस्त प्रजागण और अपने परिवार के साथ श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक उसका पालन किया। इस व्रत के पुण्यप्रभाव से राज्य में पुनः वर्षा हुई और सूखा खत्म हो गया। सभी प्रजागण एक बार फिर से सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे और राजकोष धन धान्य से भर गया।By#वनिता #कासनियां #पंजाबकान्हा दीवानी वनिता राधे राधे की और से सभी को देव शयनी #एकादशी की मंगल मय शुभ कामनाएं

#देवशयनी_एकादशी_की_व्रत_कथा पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग के समय में एक अत्यंत पराक्रमी एवं धर्मनिष्ठ राजा मांधाता राज्य किया करते थे। उनके राज्य में प्रजागण अत्यंत सुखी, संपन्न और #धर्म परायण थे। इसी कारण राजा ने वहां पर बिना किसी समस्या के कई वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया। लेकिन इस #परिदृश्य में बदलाव तब आया जब वहां तीन वर्षों तक बारिश की एक बूंद भी नहीं पड़ी और पूरे राज्य में सूखा पड़ गया। पूरा राज्य अकाल की भयंकर समस्या से जूझने लगा और इन तीन वर्षों में अन्न और फलों का एक दाना भी नहीं उपजा। ऐसे में राजा की धर्मनिष्ठा और प्रजा वत्सलता पर भी प्रश्न उठने लगे। इन विषम परिस्थितियों से थक-हार कर आखिरकार सभी प्रजागण राजा के पास सहायता मांगने पहुंच गए। उन सभी ने राजा के समक्ष हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहा कि- हे राजन, हमारे पास अब केवल आपका ही सहारा है, इसलिए हम आपकी शरण में आए हैं, कृपया इस कठिन परिस्थिति में हमारी मदद एवं रक्षा करें। प्रजा की प्रार्थना सुनकर राजा ने कहा कि, शास्त्रों में वर्णित है कि यदि कोई राजा अधर्म का अनुसरण करता है तो उसका दंड उसकी प्रजा को भुगतना पड़ता है। मैं ...

कभी विष्णु कभी शिव बन भक्त को छकाते भगवान भक्तों को आनन्द और शिक्षा देने के लिए होती है भगवान की लीला!!!!!!! By वनिता कासनियां पंजाब ?तीन बार ऐसा हुआ कि नरहरि सुनार को आंखें बंद करने पर शंकर और आंखें खोलने पर विट्ठल भगवान के दर्शन होते थे । तब नरहरि सुनार को आत्मबोध हुआ कि जो शंकर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शंकर हैं, दोनों एक ही हरिहर हैं । भगवान शिव और विष्णु की एकता दर्शाती एक मनोरंजक भक्ति कथा,,,,,,इस कथा को लिखने का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि भगवान विष्णु और शंकर में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं । भगवान शंकर और विष्णु वास्तव में दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति हैं । जल एक ही है, सिर्फ घड़े दो हैं । इसी भाव को लोगों तक पहुंचाने के लिए भगवान शंकर ने अपने भक्त नरहरि सुनार के साथ एक लीला की । भगवान जब कोई लीला करते हैं तो उसके पीछे कोई महान शिक्षा या आदर्श छिपा रहता है और भक्तों को उससे आनन्द मिलता है ।नरहरि सुनार : शिव भक्त पर विष्णु द्रोहीपुराने समय में पण्ढरपुर में नरहरि सुनार नाम के ऐसे शिव भक्त हुए जिन्होंने पण्ढरपुर में रहकर भी कभी पण्ढरीनाथ श्रीपाण्डुरंग के दर्शन नहीं किए । उनकी ऐसी विलक्षण शिवभक्ति थी । लेकिन भगवान को जिसे अपने दर्शन देने होते हैं, वे कोई-न-कोई लीला रच ही देते हैं ।भगवान की लीला से एक व्यक्ति इन्हें श्रीविट्ठल (भगवान विष्णु) की कमर की करधनी बनाने के लिए सोना दे गया और उसने भगवान की कमर का नाप बता दिया । नरहरि ने करधनी तैयार की, पर जब वह भगवान को पहनाई गयी तो वह चार अंगुल बड़ी हो गयी । उस व्यक्ति ने नरहरि से करधनी को चार अंगुल छोटा करने को कहा । करधनी सही करके जब दुबारा श्रीविट्ठल को पहनाई गयी तो वह इस बार चार अंगुल छोटी निकली । फिर करधनी चार अंगुल बड़ी की गयी तो वह भगवान को चार अंगुल बड़ी हो गयी । फिर छोटी की गयी तो वह चार अंगुल छोटी हो गयी । इस तरह करधनी को चार बार छोटा-बड़ा किया गया ।आंखों पर पट्टी बांधकर नरहरि ने लिया भगवान का नाप!!!!!!लाचार होकर नरहरि सुनार ने स्वयं चलकर श्रीविट्ठल का नाप लेने का निश्चय किया । पर कहीं भगवान के दर्शन न हो जाएं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली । हाथ बढ़ाकर जो वह मूर्ति की कमर टटोलने लगे तो उनके हाथों को पांच मुख, दस हाथ, सर्प के आभूषण, मस्तक पर जटा और जटा में गंगा—इस तरह की शिवजी की मूर्ति का अहसास हुआ । उनको विश्वास हो गया कि ये तो उनके आराध्य भगवान शंकर ही हैं ।उन्होंने अपनी आंखों की पट्टी खोल दी और ज्यों ही मूर्ति को देखा तो उन्हें श्रीविट्ठल के दर्शन हुए । फिर आंखें बंद करके मूर्ति को टटोला तो उन्हें पंचमुख, चन्द्रशेखर, गंगाधर, नागेन्द्रहाराय श्रीशंकर का स्वरूप प्रतीत हुआ।आंखें बंद करने पर शंकर, आंखें खोलने पर विट्ठल!!!!!!!तीन बार ऐसा हुआ कि आंखें बंद करने पर शंकर और आंखें खोलने पर नरहरि सुनार को विट्ठल भगवान के दर्शन होते थे । तब नरहरि सुनार को आत्मबोध हुआ कि जो शंकर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शंकर हैं, दोनों एक ही हरिहर हैं ।अभी तक उनकी जो भगवान शंकर और विष्णु में भेदबुद्धि थी, वह दूर हो गयी और उनका दृष्टिकोण व्यापक हो गया । अब वे भगवान विट्ठल के भक्तों के ‘बारकरी मण्डल’ में शामिल हो गए । सुनार का व्यवसाय करते हुए हुए भी इन्होंने अभंग (भगवान विट्ठल या बिठोवा की स्तुति में गाए गए छन्द) की रचना की । इनके एक अभंग का भाव कितना सुन्दर है—‘भगवन् ! मैं आपका एक सुनार हूँ, आपके नाम का व्यवहार (व्यवसाय) करता हूँ । यह गले का हार देह है, इसका अन्तरात्मा सोना है। त्रिगुण का सांचा बनाकर उसमें ब्रह्मरस भर दिया । विवेक का हथौड़ा लेकर उससे काम-क्रोध को चूर किया और मनबुद्धि की कैंची से राम-नाम बराबर चुराता रहा । ज्ञान के कांटे से दोनों अक्षरों को तौला और थैली में रखकर थैली कंधे पर उठाए रास्ता पार कर गया। यह नरहरि सुनार, हे हरि ! तेरा दास है, रातदिन तेरा ही भजन करता है ।’शिव-द्रोही वैष्णवों को और विष्णु-द्वेषी शैवों को इस कथा से सीख लेनी चाहिए ।पद्मपुराण पा ११४।१९२ में भगवान शंकर विष्णुजी से कहते हैं—न त्वया सदृशो मह्यं प्रियोऽस्ति भगवन् हरे ।पार्वती वा त्वया तुल्या न चान्यो विद्यते मम ।।अर्थात्—औरों की तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है ।इस पर भगवान विष्णु ने कहा—‘शिवजी मेरे सबसे प्रिय हैं, वे जिस पर कृपा नहीं करते उसे मेरी भक्ति प्राप्त नहीं होती है ।’कूर्मपुराण में ब्रह्माजी ने कहा है—‘जो लोग भगवान विष्णु को शिवशंकर से अलग मानते हैं, वे मनुष्य नरक के भागी होते हैं ।’* सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥भावार्थ:- जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है॥* संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥भावार्थ:- जिनको शंकरजी प्रिय हैं, परन्तु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिवजी के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं॥

कभी विष्णु कभी शिव बन भक्त को छकाते भगवान भक्तों को आनन्द और शिक्षा देने के लिए होती है भगवान की लीला!!!!!!! By  वनिता कासनियां पंजाब  ? तीन बार ऐसा हुआ कि नरहरि सुनार को आंखें बंद करने पर शंकर और आंखें खोलने पर विट्ठल भगवान के दर्शन होते थे । तब नरहरि सुनार को आत्मबोध हुआ कि जो शंकर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शंकर हैं, दोनों एक ही हरिहर हैं । भगवान शिव और विष्णु की एकता दर्शाती एक मनोरंजक भक्ति कथा,,,,,, इस कथा को लिखने का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि भगवान विष्णु और शंकर में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं । भगवान शंकर और विष्णु वास्तव में दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति हैं । जल एक ही है, सिर्फ घड़े दो हैं । इसी भाव को लोगों तक पहुंचाने के लिए भगवान शंकर ने अपने भक्त नरहरि सुनार के साथ एक लीला की । भगवान जब कोई लीला करते हैं तो उसके पीछे कोई महान शिक्षा या आदर्श छिपा रहता है और भक्तों को उससे आनन्द मिलता है । नरहरि सुनार : शिव भक्त पर विष्णु द्रोही पुराने समय में पण्ढरपुर में नरहरि सुनार नाम के ऐसे शिव भक्त हुए जिन्होंने पण्ढरपुर में रहकर ...

🌹 ((((राधे राधे राधे 🌹 ++++++++++++++++ 🌻 मंगलमय शुभ प्रभात वंदन 🌻 🚩═════•ॐ•═════🚩 ꧁#जय_श्री__कृष्ण꧂ 💢💢💢💢💢༺꧁ Զเधॆ Զเधॆ꧂༻ 🌹🌹🌹 . 🌹 🌹जय श्री कृष्ण जय श्री राधे राध्ध्ध्ध्धे सभी भक्त अपनी हाजरी लगाये💐 #जयश्री #राधे_राधे 💐÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ वृन्दावन का कण कण बोले श्री राधा..श्री राथा.. श्री राधा ..श्री राधाहमारो धन राधा श्रीराधा श्रीराधा हमारो धन रा-धा राधा राधा।प्राणधन रा-धा राधा राधा।🌹 जीवन धन रा-धा राधा राधा🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹*बरसाने की लाड़ली राधा,**हर लेती है सब दुःख बाधा,**राधा के संग झूमें कान्हाँ,**कान्हाँ के संग झूमीं सखियाँ,* *ये अंबर बोले राधा,* *बृज मंडल बोले राधा,**कान्हाँ की मुरली बोले राधा,**राधा राधा बस राधा,**इश्क तृष्णा, ओ मेरे कृष्णा,**मीरा रोये दिन रात,**विष क्या होता, शम्भू से पूछो,**मीरा से पूछो ना ये बात,**राधे, राधे राधे बोल मना,**तन का क्या पता,*🌹🌹🌹🌹🌹🌹*गोपाल गोविन्द बोल मना,**हरी हरी बोल मना,**कृष्णा, राधे कृष्णा बोल मना,**राधे श्याम बोल मना,* *राधे, राधे राधे बोल मना,**तन का क्या पता,* *राधे, राधे राधे बोल मना,**तन का क्या पता*🌹🌹🌹🌹🌹🌹प्रेम की सागर हैं राधा , अंन्नत प्रेम की मोती है राधा ,,, फूलो की खूशबू है राधा , नदियां की धारा है राधा ...!मोहन को मोह लेती है राधा, प्रेम प्रेम में तपती है राधा ,,,श्याम के मन में बसती राधा, वृंदावन की हस्ती हैं राधा ...!महारास के प्राण है राधा, बृज की आधार है राधा ,,,श्याम चंदा तो चकोरी राधा, वंशीवट की छैया है राधा ...!मुरली की हर धुन हैं राधा, प्रेम का हर कण कण है राधा ,,,मोहन की मनमीत है राधा, सूरज की किरणों सी है राधा ...! | |जय श्री राधे कृष्ण| |🌹जय जय श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे🌹🌹 | |श्री राधे श्री राधे ||🌹🌹 राधे के नाम का अंदाज बहुत है निराला,लिया जिसने यह नाम,राधे ने उसके हर दुःख को है टाला । राधे नाम की महिमा है बहुत भारी क्योंकि राधे के नाम से जुड़ा है श्री बांके बिहारी । जय जय श्री राधा रमन बिहारी की ।*श्री राधे" नाम अनंत हैं "श्री राधे" नाम अनमोल*🌹*जीवन सफल हो जायेगा बन्दे, "जय श्री राधे" तो बोल...!!* *जय श्री राधे🌹जय श्री राधेԶเधे Զเधे जपा करो, कृष्ण नाम* *रस पिया करो*Զเधे Զเधे जपा करो, कृष्ण नाम रस पिया करो*Զเधे देगी तुमको शक्ति, मिलेगी तुमको कृष्ण की भक्ति*Զเधे, कृपा दृष्टि बरसाया करो*, 🙏श्री Զเधे Զเधे बोलना तो पड़ेगा 🙏 जय श्रीԶเधॆ जयश्री Զเधॆ ԶเधॆԶเधॆजय श्रीԶเधॆ श्रीԶเधॆ जयश्रीԶเधॆ श्रीԶเधॆ जयԶเधॆ ԶเधॆԶเधॆ श्रीԶเधॆ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹जय श्री राधे🌹 जय श्री राधे 🌹जय श्री राधे🌹🌹राधे 🌹🌹राधे🌹🌹 राधे 🌹🌹राधे 🌹🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे🌹 राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹🌹🙏🏻🙏🏻" 🌹‼️ ◉✿Զเधॆ_Զเधॆ✿◉‼🌹 ┈┉┅━❀꧁ω❍ω꧂❀━┅┉┈🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 🌼🎉😊✦✤Զเधे_Զเधे✤✦😊🎉🌼🤗▃▅▆▓✿Զเधे__Զเधे✿▓▆▅▃🤗 😇*✹•⁘••⁘•श्री•⁘••⁘•✹*😇राधा 🥰*•°``°•.🙏¸.•°``°•.*,🥰 राधे 😍 *( Զเधे_राधे*😍किर्तन् 😘 •.¸ राधे ¸.•😘 पोस्ट 🤩°•.¸¸.•° 🤩 Vnita ❤️* ¸🙏श्री.·´¸.·´¨)¸.·*¨)* ❤️ 🌹 *(¸.·´ (¸.·´ . #कृष्णा 🌹 🌹•☆.•*´¨`*•• ❉✹,_,_,_,_,_,🦚,_,_,_,_,_,✹❉🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 ❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖जय श्री राधे कृष्णा 🧡💛💚💙💜🤎💜💙💚💛🧡 💖🏵️🕉️||राधे❤राधे||🕉️🏵️💖 💖🏵️✡️||जय_श्री_कृष्णा||✡️🏵️💖 🧡💛💚💙💜🤎💜💙💚💛🧡🍊🍋🥭🍍 राधे राधे कृष्णा जी🫐🍓🍒🍑🍐 👏👏👏👏 प्रातः वंदना जी 👏👏👏👏👏👏🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦚🦚🦚🦚 राधे राधे श्याम मिला दे🦚🦚🦚🦚💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃,💞💃 हे मेरे प्यारे सांवरिया...💃 💞💃अपना चंदा सा मुखड़ा दिखाए जा,💃💃मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले।💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃 ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ ❣️तुम बिन मोहन चैन पड़े ना,❣️ ❣️नयनो से उलझाए नैना।!!!❣️ ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰मेरी अखियन बीच समाए जा,,,,,,,,🥰🥰मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰 ,💘💘💘💘💘💘💘💘💘 💘बेदर्दी तोहे दर्द ना आवे,,,,💘 💘काहे जले पे लोण लगावे।💘 💘💘💘💘💘💘💘💘💘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘 😘आजा प्रीत की रीत निभाए जा,,,,,,😘😘मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘 💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖 💖बांसुरी अधरन धर मुसकावे,💖 💖घायल कर क्यूँ नयन चुरावे।💖 💖💖💖💖💖💖💖💖💖🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩आजा श्याम पीया आजा आए जा,🤩🤩मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले,🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 💌💌💌💌💌💌💌💌💌 💌काहे तों संग प्रीत लगाई,💌 💌निष्ठुर निकला तू हरजाई।💌 💌💌💌💌💌💌💌💌😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍लागा प्रीत का रोग मिटाए जा,,,,,,,😍😍मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍 ⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕ ⭕टेढ़ी तोरी लकुटी कमरिया,⭕ ⭕टेढो तू चितचोर सांवरिया।⭕ ⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏टेढ़ी नज़रों के तीर चलाए जा,,,,,,,👏👏मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏 🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞ 💖🏵️✡️||राधे❤राधे||✡️🏵️💖 💖🏵️✡️||जय_श्री_कृष्णा||✡️🏵️💖 ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान #पंजाब🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩

🌹 ((((राधे     राधे राधे 🌹      ++++++++++++++++       🌻 मंगलमय शुभ प्रभात वंदन 🌻    🚩═════•ॐ•═════🚩     ꧁#जय_श्री__कृष्ण꧂            💢💢💢💢💢 ༺꧁ Զเधॆ Զเधॆ꧂༻              🌹🌹🌹  . 🌹 🌹 जय श्री कृष्ण जय श्री राधे राध्ध्ध्ध्धे      सभी भक्त अपनी हाजरी लगाये 💐 #जयश्री #राधे_राधे 💐 ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷      वृन्दावन का कण कण बोले  श्री राधा..श्री राथा.. श्री राधा ..श्री राधा हमारो धन राधा श्रीराधा श्रीराधा         हमारो धन रा-धा राधा राधा। प्राणधन रा-धा राधा राधा।🌹       जीवन धन रा-धा राधा राधा 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 *बरसाने की लाड़ली राधा,* *हर लेती है सब दुःख बाधा,* *राधा के संग झूमें कान्हाँ,* *कान्हाँ के संग झूमीं सखियाँ,*  *ये अंबर बोले राधा,*   *बृज मंडल बोले राधा,* *कान्हाँ की मुरली बोले राधा,* *राधा राधा बस राधा,* *इश्क तृष्णा, ओ मेरे कृष्णा,* *मीरा रोये...