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(राधे राधे)

*बृज की एक शाम"*

By वनिता कासनियां पंजाब ?

संध्या का सुहावना समय था। चारों ओर सू्र्य की लालिमा फैली हुई थी। सूर्यदेव भी अस्ताचल की गुफा में खड़े नवीन सन्यासी की तरह सारे संसार को विशेष रुप से ब्रज मण्डल को, झांक-झांक कर देख रहे थे। उन्हें देख कर ऐसा लगता था कि मानों वे श्रीकृष्ण की निशांत कालीन लीला भी देखना चाहते थे और लीला देखते हुए अस्ताचल की गुफा में समा जाने को तैयार थे। 
किंतु वे किसी और शक्ति के कारण मजबूर थे। उन्हीं का अनुसरण करते हुए सारे पक्षी अपने-अपने घौंसलों में आकर चहचहा रहे थे। बछड़े अपनी पूंछ उठा-उठा कर खुशी से इधर-उधर कूद रहे थे, जिन गायों का दूध निकल चुका था। वे भी अपने बच्चों के पीछे-पीछे भाग रही थी। जिन गायों का दूध नहीं निकला था। वे इस प्रकार रम्भा रही थीं,मानों "गोपाल! गोपाल!!" कह कर पुकार रहीं हों। सभी ग्वाले अपनी-अपनी गायों का दूध निकालने में व्यस्त थे तथा गोपियां सज-धज कर यमुना की पूजा के लिए जा रही थीं, ब्रज के बच्चे बछड़ों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे पंरतु कन्हैया सबसे अंदर बैठा हु्आ भी सबसे दूर अपने घर के कोने में माखन की खाली मटकियों से खेल रहा था। माता यशोदा ने देखा कि सभी गोपियां यमुना में दीप-दान करने जा रही हैं अत: मुझे भी जाना चाहिए पंरतु इस नटखट का क्या करे❓

यदि वह इसे साथ में नहीं ले जाती तो जाने की जिद्द करेगा और यदि साथ चला तो वहां जाकर न तो मुझे ठीक से पूजा करने देगा और न ही अन्य गोपियों को। अत: बहला-फुसला कर यदि इसके सखाओं के साथ इसे भेज दिया जाए तो कुछ काम बन सकता है। ऐसा सोच कर यशोदा ने अपने प्राणधन गोपाल को आवाज लगाई। माता की आवाज सुनते ही कन्हैया माखन की हांडिय़ो को छोड़ कर माता के पास आ गए।

"तूने मुझे बुलाया मैया।""हां लाला, क्या कर रहा था तू अकेले में?""कुछ नहीं मैया, यूं ही खेल रहा था हांडिय़ों से।"क्यों, सखाओं के साथ नहीं गया। देख, सामने मैदान में सभी ग्वाल-बाल खेल रहे हैं।""नहीं मैया। तुझे छोड़कर मैं कहीं नहीं जाउंगा।""पागल है तू, मुझे कुछ होगा थोड़े ही, जा खेल सखाओं के साथ। "माता की बात सुनकर कन्हैया सखाओं के संग खेलने चला गया तभी यशोदा दीप-दान को जाने के लिए तैयारियां करने लगी। उसने हाथ-पैर धोए व सुंदर-सुंदर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित होकर कहीं गोपाल न देख ले, चुपके से घर से निकल गई। पंरतु सर्वान्तर्यामी प्रभु से भी भला कुछ छिप सकता है❓

सभी सखाओं को छोड़ कर दौडा़-दौडा़ " मैया मैया ! ! "पुकारता हुआ कन्हैया अपनी मैया के पास चला आया। "कहां जा रही है मैया तू❓भोलेपन से श्रीकृष्ण ने कहा कहीं नहीं, तू जा खेल ले सखाओं के साथ।"नहीं मैया, बता तो कहां जा रही है तू !"लाला ! तेरे लिए माखन मिश्री लेने जा रही हूं।" पूजा के सामान को अपने आंचल से छिपाती हुई मैया बोली।

"नहीं मैया, तू झूठ बोल रही है, मैंने, अभी देखा है कि घर में ढेर सारी माखन की मटकियां और ढेर सारी मिश्री पड़ी है! मैया, तू सच-सच बता कहां जा रही है।""लाला, मैं किसी ज़रुरी काम से जा रही हूं, तू जा खेल।""नहीं मैया, तू सज-धज के जरुर मेला देखने जा रही है। मैं भी जाऊंगा, मेला देखने।""अरे लाला ! रात को भी भला कहीं मेला होता है। मैं तो यमुना मैया की पूजा करने जा रही हूं।""अरे मैया, मैं भी जाऊंगा पूजा करने।""नहीं लाला, वहां बच्चे थोड़े ही जाते हैं।""नहीं मैया, अब मैं छोटा तो नहीं हूं, देख न कितना बड़ा हो गया हूं।"

लाला की चिकनी-चुपड़ी बातें सुन कर मैया का मन पसीज गया। अत: वह गोपाल से बोली,"देख गोपाल ! मैं तुझे ले तो जाऊं, लेकिन तू वहां करेगा कया ?" 

"मैया, मैं भी देखूंगा, तू कैसे पूजा करती है, कभी मुझको भी तो करनी होगी।""अच्छा, तू मुझे परेशान तो नहीं करेगा।तेरी साैगंध खाकर कहता हूं मैया, मैं बिलकुल परेशान नहीं करुंगा।""अच्छा ठीक है।"

इतना कहकर मैया ने यमुना की ओर मुख किया और चल दी। कन्हैया ने भी मैया के आंचल के कोने को पकड़ लिया और धीरे-धीरे मैया के पीछे-पीछे चलने लगा ताकि भक्त मैया के श्रीचरणों की रज सिर पर गिरती रहे।
यमुना पर पहुंच कर मैया ने यमुना को प्रणाम किया। यमुना की स्तुति करते हुए उसने दोना निकाला, उसमें एक दीपक जलाया तथा उसे चारों ओर से फूल इत्यादि से सजाकर यमुना में छोड़ दिया और हाथ जोड़ कर व आँख बद करके यमुना मैया के सामने न जाने क्या गुण-गुणाने लगी। कन्हैया ने देखा कि यमुना के दोनों ओर छोटी-बड़ी बूढ़ी बहुत सी गोपियां मग्न हुईं यमुना मैया की पूजा कर रही हैं तथा अपने-अपने दीपकों को भांति-भांति के भावों से प्रवाहित कर रही है। लाखों-लाखों दीपक यमुना के जल में झिलमिल-झिलमिल करते हुए बह रहे थे। थोड़ी देर बाद यशोदा मैया ने आँख खोलीं और यमुना जी को प्रणाम करते हुए वापिस जाने लगी पंरतु वहां कन्हैया का अता-पता ही नहीं था।

"कन्हैया ! ओ कन्हैया !! इसीलिए तो मैं इसे नहीं ला रही थी। अब कहां ढूंढू इस अन्धेरे में।"मैया की आवाज़ सुनकर "मैं यहां हूं ! " कन्हैया ने जवाब दिया। इधर-उधर निगाह दाैड़ाते हुए माता ने देखा कि लाला यमुना के बीच में घुसा हुआ था और बहते हुए दीपकों के साथ खेल रहा था।"अरे क्या है ? पानी से निकल, कहीं सांप आदि न डस ले।कन्हैया मुस्कराते हुए सोचता है कि भला काैन सा सांप मुझे डसेगा। इतना बड़ा विषधर कालिय नाग तो बेचारा मेरा कुछ न कर सका। अरे फिर मैं तो हमेशा ही हजारों फन वाले सांप (शेष नाग) के उपर शयन करता हूं।

"अरे ! जल्दी निकल पानी से। क्या कर रहा है तू वहां।" मैया ने कड़कती हुई आवाज़ में कहा। "मैया मैं इनको (बहते दीपकों को) किनारे लगा रहा हूं।"अरे, पागल है तू, किस-किस को किनारे लगाएगा।"मैया, मैंने सभी का ठेका थोड़े ही ले रखा है। जो मेरे सामने आएगा मैं उसे किनारे लगा दूंगा।"

अर्थात भव सागर में डूबते कष्ट पाते हुए सभी जीवों को किनारे लगाने का ठेका भगवान ने नहीं लिया है, क्योंकि भगवान जीव स्वतंत्रता में बाधा नहीं देना चाहते। हां, जो भाग्यशाली जीव भगवान के सम्मुख अर्थात शरणागत हो जाता है, उसे ही भगवान दु:खों के सागर से पार लगा देते है। जैसे कि अपनी रामलीला में, हम जीवों को हमारे ही पापों के कारण प्राप्त होने वाले कष्टों से छुटकारा पाने का तरीका बताते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी कहते हैं-
*"सन्मुख होहि जीव मोहि जबहिं, जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं। "*
 
तथा अपनी कृष्ण लीला में अर्जुन को उपदेश देते हुए भगवान कहते है-
दैवी होषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।।
मामेव ये प्रपघन्ते मायामेंतां तरन्ति ते।।

अर्थात, हे अर्जन! मेरी त्रिगुणमयी दैवीमाया से जीव अपनी चेष्टा से उर्त्तीण नहीं हो सकता! जो जीव एकमात्र मेरी शरण में आते है, केवल वे ही मेरी माया से तर जाते हैं।अरेकन्हैया ! आता नहीं किसलिए, हाऊ ले जाएगा तेरे को वहां से अपने लाला को डांटती हुई माता बोली ।

श्रीकृष्ण सोचते हैं कि मेरे हाउ रूप (भंयकर नृसिंह स्वरूप) को देखकर तो सारे देवता, कित्रर मनुष्य व राक्षस डरते हैं, मुझे काैन सा हाऊ ले जाएगा। राक्षसराज रावण को मैंने सवंश धूलि मे मिला दिया । तब तो हाऊ नहीं मिला । बेचारे शकटासुर व तृणार्वत अादि मुझे ले जाने की कोशिश कर रहे थे पंरतु अपनी जान से ही हाथ धो बैठे ।अब कौन सी हाऊ की मैया कह रही है, जो मझे ले जाएगा।

अरे कन्हैया ! देख तू मुझे परेशान मत कर, नहीं तो काली गाय को जो मक्खन मैंने निकाला है, वह मैं तुझे नहीं दूंगी, सारा तेरे दाऊ भैया को दे दूंगी ।

माता का दु:खी मन देखकर श्रीकृष्ण यमुना से बाहर निकल आए और अत्यन्त भोलेपन से माता के सामने खड़े हो गए। माता ने खूब स्नेह के साथ कन्हैया के शरीर को पोंछा और अपनी तर्जनी उंगली अपने लाला को पकड़ा कर तेजी से अपने घर की ओर चल दी । माता अनुसरण करते हुए श्रीकृष्ण भी अपने नन्हें-नन्हें कदमों से दाैड़ कर चलने लगे।
*।।जय श्री राधै कृष्ण जी 
*।।जय जय श्री राम।।*
*।।हर हर महादेव।।*

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कभी विष्णु कभी शिव बन भक्त को छकाते भगवान भक्तों को आनन्द और शिक्षा देने के लिए होती है भगवान की लीला!!!!!!! By वनिता कासनियां पंजाब ?तीन बार ऐसा हुआ कि नरहरि सुनार को आंखें बंद करने पर शंकर और आंखें खोलने पर विट्ठल भगवान के दर्शन होते थे । तब नरहरि सुनार को आत्मबोध हुआ कि जो शंकर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शंकर हैं, दोनों एक ही हरिहर हैं । भगवान शिव और विष्णु की एकता दर्शाती एक मनोरंजक भक्ति कथा,,,,,,इस कथा को लिखने का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि भगवान विष्णु और शंकर में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं । भगवान शंकर और विष्णु वास्तव में दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति हैं । जल एक ही है, सिर्फ घड़े दो हैं । इसी भाव को लोगों तक पहुंचाने के लिए भगवान शंकर ने अपने भक्त नरहरि सुनार के साथ एक लीला की । भगवान जब कोई लीला करते हैं तो उसके पीछे कोई महान शिक्षा या आदर्श छिपा रहता है और भक्तों को उससे आनन्द मिलता है ।नरहरि सुनार : शिव भक्त पर विष्णु द्रोहीपुराने समय में पण्ढरपुर में नरहरि सुनार नाम के ऐसे शिव भक्त हुए जिन्होंने पण्ढरपुर में रहकर भी कभी पण्ढरीनाथ श्रीपाण्डुरंग के दर्शन नहीं किए । उनकी ऐसी विलक्षण शिवभक्ति थी । लेकिन भगवान को जिसे अपने दर्शन देने होते हैं, वे कोई-न-कोई लीला रच ही देते हैं ।भगवान की लीला से एक व्यक्ति इन्हें श्रीविट्ठल (भगवान विष्णु) की कमर की करधनी बनाने के लिए सोना दे गया और उसने भगवान की कमर का नाप बता दिया । नरहरि ने करधनी तैयार की, पर जब वह भगवान को पहनाई गयी तो वह चार अंगुल बड़ी हो गयी । उस व्यक्ति ने नरहरि से करधनी को चार अंगुल छोटा करने को कहा । करधनी सही करके जब दुबारा श्रीविट्ठल को पहनाई गयी तो वह इस बार चार अंगुल छोटी निकली । फिर करधनी चार अंगुल बड़ी की गयी तो वह भगवान को चार अंगुल बड़ी हो गयी । फिर छोटी की गयी तो वह चार अंगुल छोटी हो गयी । इस तरह करधनी को चार बार छोटा-बड़ा किया गया ।आंखों पर पट्टी बांधकर नरहरि ने लिया भगवान का नाप!!!!!!लाचार होकर नरहरि सुनार ने स्वयं चलकर श्रीविट्ठल का नाप लेने का निश्चय किया । पर कहीं भगवान के दर्शन न हो जाएं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली । हाथ बढ़ाकर जो वह मूर्ति की कमर टटोलने लगे तो उनके हाथों को पांच मुख, दस हाथ, सर्प के आभूषण, मस्तक पर जटा और जटा में गंगा—इस तरह की शिवजी की मूर्ति का अहसास हुआ । उनको विश्वास हो गया कि ये तो उनके आराध्य भगवान शंकर ही हैं ।उन्होंने अपनी आंखों की पट्टी खोल दी और ज्यों ही मूर्ति को देखा तो उन्हें श्रीविट्ठल के दर्शन हुए । फिर आंखें बंद करके मूर्ति को टटोला तो उन्हें पंचमुख, चन्द्रशेखर, गंगाधर, नागेन्द्रहाराय श्रीशंकर का स्वरूप प्रतीत हुआ।आंखें बंद करने पर शंकर, आंखें खोलने पर विट्ठल!!!!!!!तीन बार ऐसा हुआ कि आंखें बंद करने पर शंकर और आंखें खोलने पर नरहरि सुनार को विट्ठल भगवान के दर्शन होते थे । तब नरहरि सुनार को आत्मबोध हुआ कि जो शंकर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शंकर हैं, दोनों एक ही हरिहर हैं ।अभी तक उनकी जो भगवान शंकर और विष्णु में भेदबुद्धि थी, वह दूर हो गयी और उनका दृष्टिकोण व्यापक हो गया । अब वे भगवान विट्ठल के भक्तों के ‘बारकरी मण्डल’ में शामिल हो गए । सुनार का व्यवसाय करते हुए हुए भी इन्होंने अभंग (भगवान विट्ठल या बिठोवा की स्तुति में गाए गए छन्द) की रचना की । इनके एक अभंग का भाव कितना सुन्दर है—‘भगवन् ! मैं आपका एक सुनार हूँ, आपके नाम का व्यवहार (व्यवसाय) करता हूँ । यह गले का हार देह है, इसका अन्तरात्मा सोना है। त्रिगुण का सांचा बनाकर उसमें ब्रह्मरस भर दिया । विवेक का हथौड़ा लेकर उससे काम-क्रोध को चूर किया और मनबुद्धि की कैंची से राम-नाम बराबर चुराता रहा । ज्ञान के कांटे से दोनों अक्षरों को तौला और थैली में रखकर थैली कंधे पर उठाए रास्ता पार कर गया। यह नरहरि सुनार, हे हरि ! तेरा दास है, रातदिन तेरा ही भजन करता है ।’शिव-द्रोही वैष्णवों को और विष्णु-द्वेषी शैवों को इस कथा से सीख लेनी चाहिए ।पद्मपुराण पा ११४।१९२ में भगवान शंकर विष्णुजी से कहते हैं—न त्वया सदृशो मह्यं प्रियोऽस्ति भगवन् हरे ।पार्वती वा त्वया तुल्या न चान्यो विद्यते मम ।।अर्थात्—औरों की तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है ।इस पर भगवान विष्णु ने कहा—‘शिवजी मेरे सबसे प्रिय हैं, वे जिस पर कृपा नहीं करते उसे मेरी भक्ति प्राप्त नहीं होती है ।’कूर्मपुराण में ब्रह्माजी ने कहा है—‘जो लोग भगवान विष्णु को शिवशंकर से अलग मानते हैं, वे मनुष्य नरक के भागी होते हैं ।’* सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी॥भावार्थ:- जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है॥* संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥भावार्थ:- जिनको शंकरजी प्रिय हैं, परन्तु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिवजी के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं॥

कभी विष्णु कभी शिव बन भक्त को छकाते भगवान भक्तों को आनन्द और शिक्षा देने के लिए होती है भगवान की लीला!!!!!!! By  वनिता कासनियां पंजाब  ? तीन बार ऐसा हुआ कि नरहरि सुनार को आंखें बंद करने पर शंकर और आंखें खोलने पर विट्ठल भगवान के दर्शन होते थे । तब नरहरि सुनार को आत्मबोध हुआ कि जो शंकर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शंकर हैं, दोनों एक ही हरिहर हैं । भगवान शिव और विष्णु की एकता दर्शाती एक मनोरंजक भक्ति कथा,,,,,, इस कथा को लिखने का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि भगवान विष्णु और शंकर में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं । भगवान शंकर और विष्णु वास्तव में दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति हैं । जल एक ही है, सिर्फ घड़े दो हैं । इसी भाव को लोगों तक पहुंचाने के लिए भगवान शंकर ने अपने भक्त नरहरि सुनार के साथ एक लीला की । भगवान जब कोई लीला करते हैं तो उसके पीछे कोई महान शिक्षा या आदर्श छिपा रहता है और भक्तों को उससे आनन्द मिलता है । नरहरि सुनार : शिव भक्त पर विष्णु द्रोही पुराने समय में पण्ढरपुर में नरहरि सुनार नाम के ऐसे शिव भक्त हुए जिन्होंने पण्ढरपुर में रहकर ...

🌹 ((((राधे राधे राधे 🌹 ++++++++++++++++ 🌻 मंगलमय शुभ प्रभात वंदन 🌻 🚩═════•ॐ•═════🚩 ꧁#जय_श्री__कृष्ण꧂ 💢💢💢💢💢༺꧁ Զเधॆ Զเधॆ꧂༻ 🌹🌹🌹 . 🌹 🌹जय श्री कृष्ण जय श्री राधे राध्ध्ध्ध्धे सभी भक्त अपनी हाजरी लगाये💐 #जयश्री #राधे_राधे 💐÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ वृन्दावन का कण कण बोले श्री राधा..श्री राथा.. श्री राधा ..श्री राधाहमारो धन राधा श्रीराधा श्रीराधा हमारो धन रा-धा राधा राधा।प्राणधन रा-धा राधा राधा।🌹 जीवन धन रा-धा राधा राधा🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹*बरसाने की लाड़ली राधा,**हर लेती है सब दुःख बाधा,**राधा के संग झूमें कान्हाँ,**कान्हाँ के संग झूमीं सखियाँ,* *ये अंबर बोले राधा,* *बृज मंडल बोले राधा,**कान्हाँ की मुरली बोले राधा,**राधा राधा बस राधा,**इश्क तृष्णा, ओ मेरे कृष्णा,**मीरा रोये दिन रात,**विष क्या होता, शम्भू से पूछो,**मीरा से पूछो ना ये बात,**राधे, राधे राधे बोल मना,**तन का क्या पता,*🌹🌹🌹🌹🌹🌹*गोपाल गोविन्द बोल मना,**हरी हरी बोल मना,**कृष्णा, राधे कृष्णा बोल मना,**राधे श्याम बोल मना,* *राधे, राधे राधे बोल मना,**तन का क्या पता,* *राधे, राधे राधे बोल मना,**तन का क्या पता*🌹🌹🌹🌹🌹🌹प्रेम की सागर हैं राधा , अंन्नत प्रेम की मोती है राधा ,,, फूलो की खूशबू है राधा , नदियां की धारा है राधा ...!मोहन को मोह लेती है राधा, प्रेम प्रेम में तपती है राधा ,,,श्याम के मन में बसती राधा, वृंदावन की हस्ती हैं राधा ...!महारास के प्राण है राधा, बृज की आधार है राधा ,,,श्याम चंदा तो चकोरी राधा, वंशीवट की छैया है राधा ...!मुरली की हर धुन हैं राधा, प्रेम का हर कण कण है राधा ,,,मोहन की मनमीत है राधा, सूरज की किरणों सी है राधा ...! | |जय श्री राधे कृष्ण| |🌹जय जय श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे🌹🌹 | |श्री राधे श्री राधे ||🌹🌹 राधे के नाम का अंदाज बहुत है निराला,लिया जिसने यह नाम,राधे ने उसके हर दुःख को है टाला । राधे नाम की महिमा है बहुत भारी क्योंकि राधे के नाम से जुड़ा है श्री बांके बिहारी । जय जय श्री राधा रमन बिहारी की ।*श्री राधे" नाम अनंत हैं "श्री राधे" नाम अनमोल*🌹*जीवन सफल हो जायेगा बन्दे, "जय श्री राधे" तो बोल...!!* *जय श्री राधे🌹जय श्री राधेԶเधे Զเधे जपा करो, कृष्ण नाम* *रस पिया करो*Զเधे Զเधे जपा करो, कृष्ण नाम रस पिया करो*Զเधे देगी तुमको शक्ति, मिलेगी तुमको कृष्ण की भक्ति*Զเधे, कृपा दृष्टि बरसाया करो*, 🙏श्री Զเधे Զเधे बोलना तो पड़ेगा 🙏 जय श्रीԶเधॆ जयश्री Զเधॆ ԶเधॆԶเधॆजय श्रीԶเधॆ श्रीԶเधॆ जयश्रीԶเधॆ श्रीԶเधॆ जयԶเधॆ ԶเधॆԶเधॆ श्रीԶเधॆ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹जय श्री राधे🌹 जय श्री राधे 🌹जय श्री राधे🌹🌹राधे 🌹🌹राधे🌹🌹 राधे 🌹🌹राधे 🌹🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे🌹 राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹राधे 🌹🌹🙏🏻🙏🏻" 🌹‼️ ◉✿Զเधॆ_Զเधॆ✿◉‼🌹 ┈┉┅━❀꧁ω❍ω꧂❀━┅┉┈🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 🌼🎉😊✦✤Զเधे_Զเधे✤✦😊🎉🌼🤗▃▅▆▓✿Զเधे__Զเधे✿▓▆▅▃🤗 😇*✹•⁘••⁘•श्री•⁘••⁘•✹*😇राधा 🥰*•°``°•.🙏¸.•°``°•.*,🥰 राधे 😍 *( Զเधे_राधे*😍किर्तन् 😘 •.¸ राधे ¸.•😘 पोस्ट 🤩°•.¸¸.•° 🤩 Vnita ❤️* ¸🙏श्री.·´¸.·´¨)¸.·*¨)* ❤️ 🌹 *(¸.·´ (¸.·´ . #कृष्णा 🌹 🌹•☆.•*´¨`*•• ❉✹,_,_,_,_,_,🦚,_,_,_,_,_,✹❉🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 ❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖❖जय श्री राधे कृष्णा 🧡💛💚💙💜🤎💜💙💚💛🧡 💖🏵️🕉️||राधे❤राधे||🕉️🏵️💖 💖🏵️✡️||जय_श्री_कृष्णा||✡️🏵️💖 🧡💛💚💙💜🤎💜💙💚💛🧡🍊🍋🥭🍍 राधे राधे कृष्णा जी🫐🍓🍒🍑🍐 👏👏👏👏 प्रातः वंदना जी 👏👏👏👏👏👏🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦚🦚🦚🦚 राधे राधे श्याम मिला दे🦚🦚🦚🦚💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃,💞💃 हे मेरे प्यारे सांवरिया...💃 💞💃अपना चंदा सा मुखड़ा दिखाए जा,💃💃मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले।💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃 ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️ ❣️तुम बिन मोहन चैन पड़े ना,❣️ ❣️नयनो से उलझाए नैना।!!!❣️ ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰मेरी अखियन बीच समाए जा,,,,,,,,🥰🥰मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰 ,💘💘💘💘💘💘💘💘💘 💘बेदर्दी तोहे दर्द ना आवे,,,,💘 💘काहे जले पे लोण लगावे।💘 💘💘💘💘💘💘💘💘💘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘 😘आजा प्रीत की रीत निभाए जा,,,,,,😘😘मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘 💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖 💖बांसुरी अधरन धर मुसकावे,💖 💖घायल कर क्यूँ नयन चुरावे।💖 💖💖💖💖💖💖💖💖💖🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩आजा श्याम पीया आजा आए जा,🤩🤩मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले,🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 💌💌💌💌💌💌💌💌💌 💌काहे तों संग प्रीत लगाई,💌 💌निष्ठुर निकला तू हरजाई।💌 💌💌💌💌💌💌💌💌😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍लागा प्रीत का रोग मिटाए जा,,,,,,,😍😍मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍 ⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕ ⭕टेढ़ी तोरी लकुटी कमरिया,⭕ ⭕टेढो तू चितचोर सांवरिया।⭕ ⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏टेढ़ी नज़रों के तीर चलाए जा,,,,,,,👏👏मोर मुकुट वारे, घुंघराली लट वाले॥👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏 🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩 ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞ 💖🏵️✡️||राधे❤राधे||✡️🏵️💖 💖🏵️✡️||जय_श्री_कृष्णा||✡️🏵️💖 ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान #पंजाब🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩श्री राधे कृष्णा अलबेली सरकार करदो करदो बेडा पार🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩🤩

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