बालकों में जो स्थान #नचिकेता का है वही स्थान स्त्रियों में #सावित्री का है। आइए अध्ययन करें। अभी कुछ दिन पहले भारत में नारी की दशा पर एक चर्चा हो रही थी। मेरे एक प्रखर वामपंथी मित्र जिनकी दो पुस्तक तीन बार रीप्रिंट हो चुकी हैं बोल उठे ! भारतीय समाज ने नारी को बेचारी #सती सावित्री बना दिया है ! इस पर काफ़ी तालियाँ बजीं। मैं तो दर्शक मात्र था, वक्ता नहीं किन्तु चर्चा के बाद प्रश्नोत्तर की व्यवस्था थी। तो मैने वक्ता से प्रश्न किया कि क्या आप सती अथवा सावित्री के विषय में जानते हैं?
वक्ता ने कहा , ”हाँ जानता हूँ “
मैने प्रार्थना किया , ”थोड़ा बताइए “
तो उन्होंने सती के बारे तो कुछ नहीं बताया किंतु सावित्री के बारे में बोलने लगे, ”सावित्री को सती दिखाने के लिए व्रत पाठ पूजा गले डाल दी है, मैं पूछता हूँ, पुरुष क्यों नहीं पत्नी के लिए व्रत रखते हैं ? ”
श्रोताओं को आनंद आ रहा था।
मैने कहा, ”मान्यवर आप तो अपनी बात कह चुके अब मेरे प्रश्न की बारी है तो मुझे सवाल करने का अवसर दें “
वे बोले पूछिए!
अब मैने कहा , ”सावित्री का विवाह कैसे हुआ था“
उन्होंने बताया कि पिता के कहने पर वे स्वयं अपने लिए उचित वर खोजने गयीं थीं! मैंने सभा में उपस्थित महिलाओं से पूछा, ”आप सफल महिलाओं में से किन किन को घर से यह आज़ादी मिली है ?”
अब महिलाओं के सिर नीचे झुक गए, किसी ने भी इस आज़ादी के मिलने की बात नहीं कही, मैंने वक्ता से पूछा, ”कितनी आधुनिक सशक्त महिला राजा की बेटी होने पर भी एक लकड़ी काटने वाले को पति चुन लेंगी, जिसके माता पिता अंधे हैं?"
सभा में फिर सन्नाटा था! अब मैं प्रश्न पूछने वाला और पूरी सभा उत्तर दायी थी। मैंने फिर सवाल किया, जब सावित्री ने #सत्यवान से विवाह की बात कही तो देवर्षि नारद ने क्या कहा?
वक्ता ने उत्तर दिया , ”सत्यवान की आयु मात्र एक वर्ष है, इससे विवाह नहीं करना चाहिए“
सावित्री ने क्या कहा ? “मैंने जिसे एक बार पति मान लिया तो मान लिया, विवाह करूँगी तो उसी से“
“माता पिता और #देवर्षि_नारद की बात को ठुकरा कर अपने मन की बात पूरी करने वाली बेचारी कैसे है !”
इस बात पर सभा में सन्नाटा था और महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान!! चर्चा यहीं समाप्त हुई। कुछ महिलाओं ने आकर धन्यवाद दिया कि उन्होंने कभी ऐसे सोचा ही न था !
अब आप भी सावित्री सत्यवान का संवाद सुनें और देखें कि कमजोर कौन है ! पूरी कथा लम्बी है तो सत्यवान के प्राण हर कर के जाते हुए यम का मार्ग रोकती सावित्री को यम कहते हैं , ”अब तू लौट जा, सत्यवान का अन्त्येष्टि-संस्कार कर। अब तू पति के ऋण से उऋण हो गयी। पति के पीछे तुझे जहाँ तक आना चाहिये था, तू वहाँ तक आ चुकी।”
सावित्री “जहाँ मेरे पति ले जाये जाते हैं अथवा ये स्वयं जहाँ जा रहे हैं, वहीं मुझे भी जाना चाहिये; यही सनातन धर्म है। तपस्या, गुरुभक्ति, पतिप्रेम, व्रतपालन तथा आपकी कृपा से मेरी गति कहीं भी रुक नहीं सकती।”
कितनी महिलाएँ विपदा में यह सामर्थ्य रखती हैं? महाभारत वनपर्व के पतिव्रता माहात्म्य पर्व के अंतर्गत अध्याय 297 में सावित्री और यम के संवाद का वर्णन हुआ है।
तब यमराज ने उसे समझाते हुए कहा, ”मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता। तुम और कोई मनचाहा वर मांग लो।”
तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर की आंखें मांग ली।
#यमराज ने कहा तथास्तु!!
फिर उनके पीछे चलने लगी। तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा। उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए।
तीसरा वर मांगा, मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों।
यह वर मिलने के बाद भी सावित्री यम के पीछे आती रही !
यहाँ यह विचार करना ज़रूरी है कि यमराज कोई कृपा नहीं कर रहे हैं, जिसकी मृत्यु नहीं आती है वे उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते , जो स्त्री उनके पीछे आ रही है उसका तप और सिद्धि स्पष्ट दिख रही है। तब वे वर देकर अपनी जान छुड़ा रहे हैं, क्योंकि यदि आज सत्यवान जीवित हो उठा तो मृत्यु की अजेयता ख़तरे में हैं, यहाँ सावित्री सर्वशक्तिमान है और सर्वशक्तिमान ‘यम‘ नियमों से बांधे गए एक मजबूर देवता हैं।
अब आगे सावित्री का वाक् कौशल देखें , और वह भी यम के सामने जो कि सूर्य के पुत्र हैं और नचिकेता को अमरता की दीक्षा दे चुके हैं।
यमराज ने फिर कहा, ”सावित्री तुम वापस लौट जाओ, चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो।
तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों। “यमराज ने कहा, ”तथास्तु।”
अब सावित्री पूछती हैं, ”बिना पति पुत्र कैसे“ और तब लाचार होकर यम सत्यवान के प्राण मुक्त कर जीवन देते हैं!
यहाँ आप #हनुमान और #सुरसा के संवाद को याद करें.... कैसे चतुर हनुमान विशालकाय सुरसा के मुख में प्रवेश कर बाहर आ जाते हैं और सुरसा के उन्हें खा लेने के संकल्प को पूरा भी कर देते हैं और जीवित भी रहते हैं !
आज सावित्री उससे भी अद्भुत कार्य कर रही हैं। वे सास ससुर की आँखें, राज्य , अपने लिए भाई और पति का जीवन ला रही हैं और वह भी बिना युद्ध, बिना कोर्ट कचहरी के !
जब मैं सती, सावित्री, #सीता, #द्रौपदी का जीवन देखता हूं तो मुझे पुरुष बौने लगते हैं !
आप सोचिए कि द्रौपदी को सभा में बुलाया जा रहा है कि युधिष्ठिर ने उसे दांव में खो दिया है और #दुर्योधन ने उसे सभा में बुलाया है?
ऐसी विपदा में द्रौपदी का विवेक देखें, वह सवाल करती है, ”दांव पर मुझे राजा #युधिष्ठिर ने लगाया या दास युधिष्ठिर ने ??“
दुर्योधन जान गया कि युधिष्ठिर को द्रौपदी को दांव पर लगाने की पात्रता ही नहीं थी। अब वह उत्तर नहीं देता... अपितु दूत को कहता है कि द्रौपदी से कहो कि जो भी सवाल करना है वह सभा में करना।
तो यहाँ सभा पांडव, कौरव, #द्रोण, #भीष्म सब तर्क में पराजित हैं... दुष्ट दुशासन पशुबल का प्रयोग करता है और आयु, राज्य खो देता है!
लाचार कही जाने वाली द्रौपदी एक नागिन की तरह फुफकारती है, दुशासन के रक्त से अपने बाल धोने की शपथ लेती है! पूरा करती है, कृष्ण जब संधि के लिए जा रहे थे... द्रौपदी अपने खुले केश दिखा कर कृष्ण को संकेत करती है कि उसे क्या चाहिए!
क्या यह ज्ञान, यह कठोर प्रतिज्ञा, यह दंड यह भेद जानने और अपनाने वाले को अबला कह सकते हैं।
अब आज फिर वट सावित्री के स्मरण का दिन है। हज़ारों साल पहले घटी इस घटना को काल्पनिक चाहे कह दिया जाए किंतु , उत्सव वट वृक्ष की पूजा और आनंद के इन क्षणों को खुलकर जिया जाए!
इस व्रत में छिपे पर्यावरण और दीर्घायु के रहस्य पर चर्चा बाद में करेंगे।
आज तो धन्य है भारत भूमि जहाँ सावित्री का जन्म हुआ, वो खेली बड़ी हुई और मृत्यु को पराजित किया।
(इस अप्रतिम वनिता कासनियां पंजाब लेखक को नमन)
बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की वाल से
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