राधा का दर्द ........!❣❣ कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए अचानक एक दुसरे के सामने आ गएविचलित से कृष्ण- प्रसन्नचित सी राधा...कृष्ण सकपकाए, राधा मुस्काई इससे पहले कृष्ण कुछ कहते राधा बोल उठी-"कैसे हो द्वारकाधीश ??"जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थीउसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लियाऔर बोले राधा से ... "मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँतुम तो द्वारकाधीश मत कहो!आओ बैठते है ....कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहोसच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थीइन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..." बोली राधा - "मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहाक्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आतेइन आँखों में सदा तुम रहते थेकहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओइसलिए रोते भी नहीं थेप्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोयाइसका इक आइना दिखाऊं आपको ?कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गएयमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया औरदसों उँगलियों पर चलने वाळीबांसुरी को भूल गए ?कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थीप्रेम से अलग होने पर वही ऊँगलीक्या क्या रंग दिखाने लगी ? सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगीकान्हा और द्वारकाधीश मेंक्या फर्क होता है बताऊँ ? कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जातेसुदामा तुम्हारे घर नहीं आतायुद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता हैयुद्ध में आप मिटाकर जीतते हैंऔर प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमीदुखी तो रह सकता हैपर किसी को दुःख नहीं देताआप तो कई कलाओं के स्वामी होस्वप्न दूर द्रष्टा होगीता जैसे ग्रन्थ के दाता होपर आपने क्या निर्णय कियाअपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया ? सेना तो आपकी प्रजा थीराजा तो पालाक होता हैउसका रक्षक होता हैआप जैसा महा ज्ञानीउस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुनआपकी प्रजा को ही मार रहा थाआपनी प्रजा को मरते देखआपमें करूणा नहीं जगी ? क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थेआज भी धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि कोढूंढते रह जाओगे हर घर हर मंदिर मेंमेरे साथ ही खड़े नजर आओगेआज भी मै मानती हूँ लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैंउनके महत्व की बात करते हैमगर धरती के लोगयुद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं, i.प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं By वनिता कासनियां पंजाब ?❤️ गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है, पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है".।।।🙏🌹🌹राधे राधे 🌹🌹🙏🏻
राधा का दर्द ........!❣❣ कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए अचानक एक दुसरे के सामने आ गए विचलित से कृष्ण- प्रसन्नचित सी राधा... कृष्ण सकपकाए, राधा मुस्काई इससे पहले कृष्ण कुछ कहते राधा बोल उठी- "कैसे हो द्वारकाधीश ??" जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया और बोले राधा से ... "मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ तुम तो द्वारकाधीश मत कहो! आओ बैठते है .... कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहो सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..." बोली राधा - "मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते इन आँखों में सदा तुम रहते थे कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया इसका इक आइना दिखाऊं आपको ? कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ? कभी सोचा इस तरक्की ...