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राधा का दर्द ........!❣❣ कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए अचानक एक दुसरे के सामने आ गएविचलित से कृष्ण- प्रसन्नचित सी राधा...कृष्ण सकपकाए, राधा मुस्काई इससे पहले कृष्ण कुछ कहते राधा बोल उठी-"कैसे हो द्वारकाधीश ??"जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थीउसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लियाऔर बोले राधा से ... "मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँतुम तो द्वारकाधीश मत कहो!आओ बैठते है ....कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहोसच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थीइन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..." बोली राधा - "मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहाक्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आतेइन आँखों में सदा तुम रहते थेकहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओइसलिए रोते भी नहीं थेप्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोयाइसका इक आइना दिखाऊं आपको ?कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गएयमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया औरदसों उँगलियों पर चलने वाळीबांसुरी को भूल गए ?कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थीप्रेम से अलग होने पर वही ऊँगलीक्या क्या रंग दिखाने लगी ? सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगीकान्हा और द्वारकाधीश मेंक्या फर्क होता है बताऊँ ? कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जातेसुदामा तुम्हारे घर नहीं आतायुद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता हैयुद्ध में आप मिटाकर जीतते हैंऔर प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमीदुखी तो रह सकता हैपर किसी को दुःख नहीं देताआप तो कई कलाओं के स्वामी होस्वप्न दूर द्रष्टा होगीता जैसे ग्रन्थ के दाता होपर आपने क्या निर्णय कियाअपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया ? सेना तो आपकी प्रजा थीराजा तो पालाक होता हैउसका रक्षक होता हैआप जैसा महा ज्ञानीउस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुनआपकी प्रजा को ही मार रहा थाआपनी प्रजा को मरते देखआपमें करूणा नहीं जगी ? क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थेआज भी धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि कोढूंढते रह जाओगे हर घर हर मंदिर मेंमेरे साथ ही खड़े नजर आओगेआज भी मै मानती हूँ लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैंउनके महत्व की बात करते हैमगर धरती के लोगयुद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं, i.प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं By वनिता कासनियां पंजाब ?❤️ गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है, पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है".।।।🙏🌹🌹राधे राधे 🌹🌹🙏🏻

राधा का दर्द ........!❣❣ कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए  अचानक एक दुसरे के सामने आ गए विचलित से कृष्ण-  प्रसन्नचित सी राधा... कृष्ण सकपकाए,  राधा मुस्काई  इससे पहले कृष्ण कुछ कहते  राधा बोल उठी- "कैसे हो द्वारकाधीश ??" जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया  फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया और बोले राधा से ...  "मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ तुम तो द्वारकाधीश मत कहो! आओ बैठते है .... कुछ मै अपनी कहता हूँ  कुछ तुम अपनी कहो सच कहूँ राधा  जब जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..."  बोली राधा -  "मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते इन आँखों में सदा तुम रहते थे कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया इसका इक आइना दिखाऊं आपको ? कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ? कभी सोचा इस तरक्की ...

*#भीष्म_पितामह ने गीता में अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन ना करने के लिए बताया था।* 👉🏿1) #पहल_भोजन- जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है।👉🏿2) #दूसरा_भोजन- जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई ,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है।👉🏿3) #तीसरे_प्रकार का भोजन -जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है।👉🏿4)#चौथे_नंबर का भोजन -अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है।(शराब के समान )#विषेश_सूचना -- और सुन अर्जुन- बेटी अगर कुवारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में ,, उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ,क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ।इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें। क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं। *स्नान कब ओर केसे करे घर की समृद्धि बढाना हमारे हाथमे है*सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए है।*1* *मुनि स्नान।*जो सुबह 4 से 5 के बिच किया जाता है।.*2* *देव स्नान।*जो सुबह 5 से 6 के बिच किया जाता है।.*3* *मानव स्नान।*जो सुबह 6 से 8 के बिच किया जाता है।.*4* *राक्षसी स्नान।*जो सुबह 8 के बाद किया जाता है। ▶️मुनि स्नान सर्वोत्तम है।▶️देव स्नान उत्तम है।▶️मानव स्नान समान्य है।▶️राक्षसी स्नान धर्म में निषेध है।.किसी भी मानव को 8 बजे के बाद स्नान नही करना चाहिए।.*मुनि स्नान .......*👉🏻घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विध्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है।.*देव स्नान ......*👉🏻 आप के जीवन में यश , किर्ती , धन वैभव,सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है।.*मानव स्नान.....*👉🏻काम में सफलता ,भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगल मय , प्रदान करता है।.*राक्षसी स्नान.....*👉🏻 दरिद्रता , हानि , कलेश ,धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है ।.किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नही करना चाहिए।.पुराने जमाने में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे।*खास कर जो घर की स्त्री होती थी।* चाहे वो स्त्री माँ के रूप में हो,पत्नी के रूप में हो,बेहन के रूप में हो।.घर के बडे बुजुर्ग यही समझाते सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए।.*ऐसा करने से धन ,वैभव लक्ष्मी, आप के घर में सदैव वास करती है।*.उस समय...... एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा पारिवार पल जाता था , और आज मात्र पारिवार में चार सदस्य भी कमाते है तो भी पूरा नही होता।.उस की वजह हम खुद ही है । पुराने नियमो को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए नए नियम बनाए है।.प्रकृति ......का नियम है, जो भी उस के नियमो का पालन नही करता ,उस का दुष्टपरिणाम सब को मिलता है।.इसलिए अपने जीवन में कुछ नियमो को अपनाये । ओर उन का पालन भी करे।.आप का भला हो ,आपके अपनों का भला हो।.मनुष्य अवतार बार बार नही मिलता।.अपने जीवन को सुखमय बनाये।जीवन जीने के कुछ जरूरी नियम बनाये।☝🏼 *याद रखियेगा !* 👇🏽 *संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है।**सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए।* *पर संस्कार नहीं दिए तो वे जिंदगी भर रोएंगे।*ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।जवाब:-अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-(1)जल(2) पथ्वी(3)आकाश(4)वायू(5) अग्निये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है1. श्मशान में2. अर्थी के पीछे3. शौक में4. मन्दिर में5. कथा मेंसिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।अकेले हो?परमात्मा को याद करो ।परेशान हो?ग्रँथ पढ़ो ।उदास हो?कथाए पढो ।टेन्शन मे हो?भगवत गीता पढो ।फ्री हो?अच्छी चीजे फोरवार्ड करोहे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......सूचनाक्या आप जानते हैं ?हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।व्रत,उपवास करने से तेज़ बढ़ता है,सर दर्द और बाल गिरने से बचाव होता है ।आरती----के दौरान ताली बजाने सेदिल मजबूत होता है ।ये मेसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नही होने दे और मेसेज सब नम्बरो को भेजे ।श्रीमद भगवत गीता पुराण और रामायण ।.''कैन्सर"एक खतरनाक बीमारी है...बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...बहुत मामूली इलाज करके इसबीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते है ...खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्स'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...''हिन्दु ग्रंथो मे बताया गया है कि...खाने से पहले'पानी 'पीनाअमृत"है...खाने के बीच मे 'पानी ' पीना शरीर की''पूजा'' है...खाना खत्म होने से पहले 'पानी'''पीना औषधि'' है...खाने के बाद 'पानी' पीना"बीमारीयो का घर है...बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी 'पीये...ये बात उनको भी बतायें जो आपको "जान"से भी ज्यादा प्यारे है...जय श्री रामरोज एक सेबनो डाक्टर ।रोज पांच बदाम,नो कैन्सर ।रोज एक निबु,नो पेट बढना ।रोज एक गिलास दूध,नो बौना (कद का छोटा)।रोज 12 गिलास पानी,नो चेहेरे की समस्या ।रोज चार काजू,नो भूख ।रोज मन्दिर जाओ,नो टेन्शन ।रोज कथा सुनो मन को शान्ति मिलेगी ।।"चेहरे के लिए ताजा पानी"।"मन के लिए गीता की बाते"।"सेहत के लिए योग"।और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।अच्छी बाते फैलाना पुण्य है.किस्मत मे करोड़ो खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।ज ीवन के अंतिम दिनो मे इन्सान इक इक पुण्य के लिए तरसेगा ।जब तक ये मेसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...#वनिता #कासनियां #पंजाब #जय_श्री_राम 🙏🏻राधे राधे ❤️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*#भीष्म_पितामह ने   गीता में अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन ना करने के लिए  बताया था।*   👉🏿1) #पहल_भोजन- जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है। 👉🏿2) #दूसरा_भोजन- जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई ,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है। 👉🏿3) #तीसरे_प्रकार का भोजन -जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है। 👉🏿4)#चौथे_नंबर का भोजन -अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है।(शराब के समान ) #विषेश_सूचना --  और सुन अर्जुन-  बेटी अगर कुवारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में ,, उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ,क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ।इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें। क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं।  *स्नान कब ओर केसे करे घर की समृद्धि बढाना हमारे हाथमे है* सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए है। *1*  *मुन...

हजारो साल पुराना #इतिहास पढ़ते हैं।#छुआछूत_और #जातिवाद_के_नाम पर मुगलों और अंग्रेजो द्वार समाज में घोला गया जहर पहले क्या था अब क्या है जरूर पढ़े#वनिता #कासनियां #पंजाबसम्राट #शांतनु_ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री #सत्यवती_से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए #भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?#महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारन के बेटे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।#विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, #हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।#भीम ने वनवासी #हिडिम्बा से विवाह किया।#श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे, उनके भाई #बलराम खेती करते थे , हमेशा हल साथ रखते थे।#यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।राम के साथ वनवासी #निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।उनके पुत्र लव कुश महर्षि #वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे और पहले डाकू थे।तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से #नाई थे । नन्द वंश की शुरुवात #महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।उसके बाद #मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत #चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण #चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।केवल #पुष्यमित्र_शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया ? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा।अंत में #मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले #गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, #चरवाहा जाति के #होलकर को मालवा का राजा बनाया। अहिल्या बाई होलकर खुद मानकर की बेटी थी बहुत बड़ी शिवभक्त थी, इंदौर में राज चलाया ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार #रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण #रामानंद थे|।यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया। अंग्रेज अधिकारी #निकोलस_डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि "मेगास्थनीज" ने इंडिका लिखी, 'फाहियान', 'ह्यू सांग 'और 'अलबरूनी' जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था। जन्म आधारित जातीयव्यवस्था #हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।इसलिए #भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से ख़ुद भी बचें और औरों को भी बचाएं ।#भारत_बचाओ #आंदोलन

हजारो साल पुराना #इतिहास पढ़ते हैं। #छुआछूत_और #जातिवाद_के_नाम पर मुगलों और अंग्रेजो द्वार समाज में घोला गया जहर पहले क्या था अब क्या है जरूर पढ़े #वनिता #कासनियां #पंजाब सम्राट #शांतनु_ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री #सत्यवती_से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए #भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की। सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा? #महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारन के बेटे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो। #विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, #हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है। #भीम ने वनवासी #हिडिम्बा से विवाह किया। #श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,  उनके भाई  #बलराम खेती करते थे , हमेशा हल साथ रखते थे। #यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया। राम के साथ वनवासी #निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे। उनके पु...

❤️राधे राधे❤️

बालकों में जो स्थान #नचिकेता का है वही स्थान स्त्रियों में #सावित्री का है। आइए अध्ययन करें। अभी कुछ दिन पहले भारत में नारी की दशा पर एक चर्चा हो रही थी। मेरे एक प्रखर वामपंथी मित्र जिनकी दो पुस्तक तीन बार रीप्रिंट हो चुकी हैं बोल उठे ! भारतीय समाज ने नारी को बेचारी #सती सावित्री बना दिया है ! इस पर काफ़ी तालियाँ बजीं। मैं तो दर्शक मात्र था, वक्ता नहीं  किन्तु चर्चा के बाद प्रश्नोत्तर की व्यवस्था थी।  तो मैने वक्ता से प्रश्न किया कि क्या आप सती अथवा सावित्री के विषय में जानते हैं? वक्ता ने कहा , ”हाँ जानता हूँ “  मैने प्रार्थना किया , ”थोड़ा बताइए “ तो उन्होंने  सती के बारे तो कुछ नहीं बताया किंतु सावित्री के बारे में बोलने लगे, ”सावित्री को सती दिखाने के लिए व्रत पाठ पूजा गले डाल दी है, मैं पूछता हूँ, पुरुष क्यों नहीं पत्नी के लिए व्रत रखते हैं ? ”  श्रोताओं को आनंद आ रहा था। मैने कहा, ”मान्यवर आप तो अपनी बात कह चुके अब मेरे प्रश्न की बारी है तो मुझे सवाल करने का अवसर दें “ वे बोले पूछिए! अब मैने कहा , ”सावित्री का विवाह कैसे हुआ था“  उन्होंने ...

(राधे राधे)

*बृज की एक शाम"* By वनिता कासनियां पंजाब ? संध्या का सुहावना समय था। चारों ओर सू्र्य की लालिमा फैली हुई थी। सूर्यदेव भी अस्ताचल की गुफा में खड़े नवीन सन्यासी की तरह सारे संसार को विशेष रुप से ब्रज मण्डल को, झांक-झांक कर देख रहे थे। उन्हें देख कर ऐसा लगता था कि मानों वे श्रीकृष्ण की निशांत कालीन लीला भी देखना चाहते थे और लीला देखते हुए अस्ताचल की गुफा में समा जाने को तैयार थे।  किंतु वे किसी और शक्ति के कारण मजबूर थे। उन्हीं का अनुसरण करते हुए सारे पक्षी अपने-अपने घौंसलों में आकर चहचहा रहे थे। बछड़े अपनी पूंछ उठा-उठा कर खुशी से इधर-उधर कूद रहे थे, जिन गायों का दूध निकल चुका था। वे भी अपने बच्चों के पीछे-पीछे भाग रही थी। जिन गायों का दूध नहीं निकला था। वे इस प्रकार रम्भा रही थीं,मानों "गोपाल! गोपाल!!" कह कर पुकार रहीं हों। सभी ग्वाले अपनी-अपनी गायों का दूध निकालने में व्यस्त थे तथा गोपियां सज-धज कर यमुना की पूजा के लिए जा रही थीं, ब्रज के बच्चे बछड़ों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे पंरतु कन्हैया सबसे अंदर बैठा हु्आ भी सबसे दूर अपने घर के कोने में माखन की खाली मटक...

सूर्य का तांत्रिक मंत्र#ॐ_घृणि_ #सूर्याय_नमःसूर्य का बीज मंत्र#ॐ_ह्रां_ह्रीं_ह्रौं_सः #सूर्याय नमः#सूर्यदेव_की_व्रत_ #कथाप्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुनकर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती। सूर्य भगवान की अनुकंपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिंता एवं कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई।प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुंदर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुंदर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं।पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरंत उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी।बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ।उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उसे नगर के राजा के पास भेज दिया। सुंदर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा. तुम्हारा महल नष्ट हो जाएगा। सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया।राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए, राजतय में चारों ओर खुशहाली छा गई। स्त्री-पुरुष सुखी जीवन यापन करने लगे तथा सभी लोगों के शारीरिक कष्ट भी दूर हो गए।श्री सूर्य देव की आरतीजय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥#Vnita 🙏🙏💞हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव

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नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां_पंजाब #संगरिया #राजस्थानजो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं और सबका बहुत ध्यान रखते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । नन्दबाबा के सौभाग्य को दर्शाने वाला एक सुन्दर श्लोक है—श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता: ।अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परब्रह्म ।।अर्थात्—संसार से भयभीत होकर कोई श्रुति (वेद) का आश्रय ले, तो दूसरा स्मृति (उपनिषदों) की शरण ग्रहण करे तो कोई तीसरा महाभारत (ग्रन्थ) की शरण में जाए; परन्तु हम तो नन्दबाबा की चरण-वन्दना करते हैं, जिनके आंगन में साक्षात् परब्रह्म श्रीकृष्ण खेलते हैं ।नन्दबाबा है श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता!!!!!!गोलोक में #नन्दबाबा #भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, #गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया।भगवान के नित्य-जन जब पृथ्वी पर पधारते हैं तो कोई-न-कोई प्राणी जो उनका अंश रूप होता है, उनसे एकाकार हो जाता है; इसीलिए पूर्वकल्प में वसु नाम के द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवी ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वर मांगा कि ‘जब श्रीहरि पृथ्वी पर प्रकट हों, तब हमारा उनमें पुत्र-भाव हो ।’ ब्रह्माजी के वरदान से द्रोण व्रज में नन्द हुए और धरादेवी यशोदा हुईं ।नन्दबाबा, वसुदेवजी और नौ नन्दयदुवंश के राजा देवमीढ़ मथुरा में रहते थे । उनकी दो पत्नियां थी । पहली पत्नी क्षत्रियकन्या थी जिनके पुत्र हुए शूरसेन और शूरसेन के पुत्र थे वसुदेवजी । राजा देवमीढ़ की दूसरी पत्नी वैश्यपुत्री थी जिनके पुत्र का नाम था पर्जन्य । इन्होंने यमुना के पार महावन में अपना निवास बनाया। ये व्रजमण्डल के सबसे बड़े माननीय गोप थे । इनके नौ पुत्र हुए जिन्हें ‘नौ नन्द’ कहा जाता है, जिनके नाम हैं—धरानन्द,ध्रुवनन्द,उपनन्द,अभिनन्द,नन्द,सुनन्द,कर्मानन्द,धर्मानन्द, और बल्लभजी।मझले होने पर भी भाइयों की सम्मत्ति से नन्दजी ‘व्रजेश्वर’—गोपों के नायक बने । प्रत्येक गोप के पास हजारों गौएं होती थीं । जहां गौएं रहती थीं, उसे ‘गोकुल’ कहते थे । नौ लाख गायों के स्वामी को ‘नन्द’ कहा जाता था।वसुदेवजी नन्दबाबा के भाई ही लगते थे और उनसे नन्दबाबा की बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी । जब मथुरा में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा, तब वसुदेवजी ने अपनी पत्नी रोहिणीजी को नन्दजी के यहां भेज दिया । श्रीकृष्ण को भी वसुदेवजी चुपचाप नन्दगृह में रख आए ।नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!!!गोपराज नन्द समस्त समृद्धियों से सम्पन्न थे, पर उनके कोई पुत्र नहीं था । आयु का चौथापन था इसलिए उपनन्द आदि वृद्ध गोपों ने एक पुत्रेष्टि-यज्ञ का आयोजन किया । इधर बाहर यज्ञमण्डप ब्राह्मणों की वेदध्वनि से मुखरित था, उधर अंत:पुर में गोपराज नन्द यशोदाजी से कह रहे थे–’व्रजरानी ! मैं जिसको सदा अपने पुत्र के रूप में देखता हूँ, मैंने जिसको अपने मनोरथ पर बैठाया है और जिसको स्वप्न में देखा है, वह ‘अचल’ है । ऐसी असम्भव बात कहना पागलपन ही माना जाएगा । सुनो, मैं अपने मनोरथ में और स्वप्न में देखता हूँ दिव्यातिदिव्य नीलमणि सदृश्य श्यामसुन्दर वर्ण का एक बालक, जिसके चंचल नेत्र अत्यन्त विशाल हैं, वह तुम्हारी गोद में बैठकर भांति-भांति के खेल कर रहा है । उसे देखकर मैं अपने आपको खो देता हूँ । यशोदे ! सत्य बताओ, क्या कभी तुमने भी स्वप्न में इस बालक को देखा है ?’गोपराज की बात सुनकर यशोदाजी आनन्दविह्वल होकर कहने लगीं–’व्रजराज ! मैं भी ठीक ऐसे ही बालक को सदा अपनी गोद में खेलते देखती हूँ । मैंने भी अति असंभव समझकर कभी आपको यह बात नहीं बतायी । कहां मैं क्षुद्र स्त्री और कहां दिव्य नीलमणि ।’ नन्दबाबा ने कहा–भगवान नारायण की कृपादृष्टि से इस दुर्लभ-सी मनोकामना का पूर्ण होना असंभव नहीं है । अत: नन्द-दम्पत्ति ने एक वर्ष के लिए श्रीहरि को अत्यन्त प्रिय द्वादशी तिथि के व्रत का नियम ले लिया ।नन्द-यशोदा के द्वादशी-व्रत की संख्या बढ़ने के साथ-ही-साथ स्वप्न में देखे हुए परम सुन्दर दिव्य बालक को पुत्र रूप में प्राप्त करने की लालसा भी बढ़ती गई । व्रत-अनुष्ठान पूर्ण होने पर एक दिन उन्होंने अपने इष्टदेव चतुर्भुज नारायण को स्वप्न में उनसे कहते सुना–’द्रोण और धरारूप से तप करके तुम दोनों जिस फल को प्राप्त करना चाहते थे, उसी फल का आस्वादन करने के लिए तुम दोनों स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हुए हो। शीघ्र ही तुम लोगों का वह सुन्दर मनोरथ सफल होगा।’ भगवान के वचनों को सुनकर नन्द-यशोदा उस सुन्दर बालक को पुत्ररूप में प्राप्त करने की प्रतीक्षा करने लगे ।भगवान पहले नन्दबाबा के हृदय में आए और फिर स्वप्न में दीखा हुआ बालक एक बिजली-सी चमकती हुई बालिका के साथ नन्दहृदय से निकल कर यशोदाजी के हृदय में प्रवेश कर गया । आठ महीनों के बाद भाद्रप्रद मास की कृष्णाष्टमी के दिन नन्दनन्दन का प्राकट्य हो गया और व्रजराज का वंश चलने से व्रज को आधार-स्तम्भ मिल गया ।नन्दबाबा को हुआ श्रीकृष्ण के स्वरूप का ज्ञान!!!!!!एक दिन नन्दबाबा एकादशी का व्रत करके द्वादशी के दिन आधी रात को यमुना में स्नान करने आए । उस समय वरुण के दूतों ने उन्हें पकड़ लिया और वरुणलोक में ले गए । दूसरे दिन प्रात:काल गोप नन्दजी को नहीं देखकर विलाप करने लगे । सर्वान्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण सब बातें जान कर वरुण लोक गए । वहां वरुणदेव ने उनकी पूजा की और अपने दूतों की धृष्टता के लिए माफी मांगी । तब भगवान नन्दबाबा को लेकर व्रज में आए तो उन्हें विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण देवताओं के कार्य के लिए अवतीर्ण होने वाले साक्षात् पुरुषोत्तम ही हैं ।इसी प्रकार एक बार नन्दजी शिवरात्रि को सब गोपों के साथ अम्बिकावन में देवीपूजा के लिए गए । वहां रात्रि में सोते समय नन्दजी को एक अजगर ने पकड़ लिया । गोपों ने उसे जलती लकड़ी से बहुत मारा, पर वह गया नहीं । तब भगवान श्रीकृष्ण ने पैर के अंगूठे से उसे छू दिया । छूते ही वह गन्धर्व बन गया और उसकी सद्गति हो गयी ।श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से विरह में व्रजवासियों की बड़ी आर्त दशा हो गई । एक दिन श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा ज्ञानी उद्धव से कहा–हे उद्धव ! तुम शीघ्र ही व्रज जाओ, ब्रह्मज्ञान का संदेश सुनाकर व्रजवासियों का ताप हरो । उद्धवजी व्रज में आए और दस मास यहीं रहे । नन्दबाबा से विदा लेते समय उद्धवजी ने उन्हें समझाने की चेष्टा की—‘श्रीकृष्ण किसी के पुत्र नहीं हैं, वे तो स्वयं भगवान हैं ।’ पिता के वात्सल्य से अभिभूत नन्दबाबा ने कहा–’तुम्हारे मत से श्रीकृष्ण ईश्वर हैं, अच्छा, वैसा ही हो । उस कृष्णरूपी परमेश्वर में मेरी रति और मति सदैव लगीं रहे।’ ऐसा कहते ही नन्दरायजी की आंखों से अश्रुओं की झड़ी लग गई।नन्दबाबा वात्सल्यरस के अधिदेवता!!!!!एक बार सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में पूरा व्रजमण्डल और द्वारकावासी एकत्र हुए । उस समय का कितना करुणापूर्ण दृश्य था जब नन्दबाबा ने अपने प्यारे कन्हैया को गोदी में बिठाकर उनका मुख चूमा । उस चुम्बन में कितनी विरह-वेदना, कितनी अतीत की स्मृतियां बसीं थीं इसे कौन जान सकता है ? कुरुक्षेत्र से लौटने पर भगवान श्रीकृष्ण के निज धाम पधारने पर व्रजमण्डल, ग्वाल-बाल, गोप-गोपियां, गौ-बछड़े, दिव्य वृक्ष, लता आदि नन्दबाबा के साथ अपने सनातन गोलोक को चले गए, जहां न बुढ़ापा है न रोग, न ही है मृत्यु का भय । बस है तो चारों तरफ सच्चिदानन्द आनन्दघन श्रीकृष्ण का आनन्द-ही-आनन्द।#वनिता_कासनियां_पंजाब 🙏🙏❤️❤️ राधे राधे ❤️मैं कभी जन्मा नहीं.... मैं अमर हूँ पार्थ,मैं ही सबसे पहले हूँ,, और मैं ही सबके बाद...!!🙏 🙏🌹जय #श्री #राधे #कृष्णा 🌹🙏🙏

नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां_पंजाब #संगरिया #राजस्थानजो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं और सबका बहुत ध्यान रखते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । नन्दबाबा के सौभाग्य को दर्शाने वाला एक सुन्दर श्लोक है—श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता: ।अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परब्रह्म ।।अर्थात्—संसार से भयभीत होकर कोई श्रुति (वेद) का आश्रय ले, तो दूसरा स्मृति (उपनिषदों) की शरण ग्रहण करे तो कोई तीसरा महाभारत (ग्रन्थ) की शरण में जाए; परन्तु हम तो नन्दबाबा की चरण-वन्दना करते हैं, जिनके आंगन में साक्षात् परब्रह्म श्रीकृष्ण खेलते हैं ।नन्दबाबा है श्रीकृष्ण के नित्य सिद्ध पिता!!!!!!गोलोक में #नन्दबाबा #भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, #गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया।भगवान के नित्य-जन ...